गुरुवार, 27 अगस्त 2015

शांत हो गया मेरा प्रेम

जी रहा हूँ तेरे बगैर
एक खाली शहर की तरह
जहां शोर-शराबा तो है
पर हर जगह कमी है तेरे प्यार की
जब तुमने रोक दिया एक मोड पे
अपने कीन्हीं कारण से
पर मुझे एक भी पल काटना
मुश्किल लगता है हर दिन
क्यों शांत हो गयी हो इस तरह
कुछ बोलती क्यों नहीं
तरफ रहा हूँ तेरे हर लफ्ज सुनने को
हर पल नैन से निकलते हैं आँसू मेरे
प्यार करना सिखाया तुमने मुझे
इसलिए हर रोज़ तड़प रहा हूँ तेरे प्यार के लिए
लेकिन तुम भी मेरे लिए
हर पल यही सोचती होगी
बीते लम्हे मुझे जब भी याद आती हैं
सूनी पलके मेरी फिर से भीग जाती हैं
ये दिल हर पल क्यों ये कहता रहता है
उसे सोचकर तेरी धड़कन क्यों रूक जाती हैं

सोमवार, 24 अगस्त 2015

सबसे बड़ी भूल

उस वक़्त तुम छोटी थी
पर तब भी सबसे प्यारी थी
लेकिन तब भी मेरे ज़हन में थी
दिल तो तब भी करता था
तुमसे किसी तरह मुलाकात करूँ
लेकिन मैं लाचार था
एक ऐसा यार था
बात संयोग से कभी होती थी
पर मैं कुछ कर नहीं सकता था
मैंने बहुत सारा उपाय सोचा
कितनी कोशिश की मिलने की
अंतिम क्षण में
निराश होकर बैठ गया
जब सबने पूछा
क्या हुआ, कुछ बोलते क्यों नहीं
फिर मैंने सोच के
कुछ भूले हुये दोस्तों,
कुछ गुजरे हुये लम्हों को याद कर रहा हूँ
लेकिन फिर जब
अंतिम वर्ष तुमसे फिर मुलाकात हुई
तो ऐसा लगा
जैसे गुज़रा हुआ पल
फिर से लौट आया है
बीते हुये लम्हों को साथ लाया है
जिसमे कुछ खुशी,
और कुछ ग़म समाया है
कुछ महीने बीत गए
जब तुमसे बात नहीं हुई
लेकिन इन महीनो में
कुछ ऐसे साथी मिले
जिनके साथ में रहकर
ये सोच लिया
भ्रम के कारण उनसे
मोहब्बत हो गयी
एक ऐसी चाहत हो गयी
जो मैं कभी भूलना नहीं चाहता
लेकिन मैं ये सब
बुरे सपने की तरह अब
भूल चुका हूँ
तुमने आ कर मुझे
इस तरह समझा दिया
प्यार करने का
मतलब बता दिया
की अब मुझे हर पल
ऐसा लगता है
की मैं तुम्हारे बिना
नहीं रह सकता
मुझसे एक भी पल बिताना
अब मुश्किल है लगता
लेकिन इन सबके बीच
एक ऐसी भूल हो गयी
जिसे मैं अब कभी भी
नहीं करना चाहता
मैंने वो गलती कर दी
जिसके कारण हर वक़्त
मन में इस बात का डर रहता है
की कहीं मैं खो ना दूँ
पर समय ने मुझसे ये कहा
ठहर जाओ, ज्यादा चिंता मत करो
सब ठीक हो जाएगा
क्योंकि सब्र का परिणाम
हमेशा अच्छा ही होता है !!

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

कमजोर हुआ किरदार

है क्या कमी मुझमें
ज़रा ये तो बता दो
जानता हूँ तुम्हें प्यार नहीं है
पर नफरत ही जता दो
चाहते तो सभी हैं
पर कोई दिल से नहीं चाहता
कहते ये सभी हैं
पर उसके मन को मैं भी हूँ जानता
मैंने तुझसे दोस्ती की
सच्चे दिल से निभाने की कोशिश की
पर तुम्हें ये रास नहीं आया
मैंने तुम्हें आज तक ये नहीं बताया
की मेरे दिल में क्या बात है
और तुमने ये भी जताने नहीं दिया
जब तुम्हें जाना था
उस पल मेरे दिल में खुशी का कैसा आलम था
ये मैंने आज तक ज़ाहिर नहीं किया
एक सच्चे दोस्त की तरह
तुझसे रिश्ता निभाने की तमन्ना थी
तुझसे एक ऐसी चाहत थी
जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता
मैं ही अनचाहे में तुझे
अपना प्यार समझ लिया था
अपनी खुशी का चाहत का मान लिया था
तुमने जब मुझसे ये बोला था
मेरा और तुम्हारा साथ हमेशा रहेगा
तब ना जाने क्यूँ
ये लगने लगा था
की कोई अपना मिल गया
एक अजीब-सा विचार मन में आने लगा था
पर मैं अब समझ गया हूँ
जो मेरा नहीं है
उसे मैं पाने की कोशिश बिलकुल नहीं करूंगा
लेकिन अब मुझे मिल गया है
एक ऐसा कोई अपना-सा
जो अपनों से भी ज़्यादा प्यार देता है
मुझे उससे बात करके
इस तरह खुशी इस तरह मिलती है
जैसे किसी को खोये हुए से
अचानक मुलाकात हो जाती है

सोमवार, 15 जून 2015

गुमराहों का रास्ता

आसमान में चमकते सितारे
कह रहे हैं चीख-चीख कर
तेरी किस्मत भी मेरी तरह है
जो वर्षा से पहले नज़र नहीं आते हैं
जो दिखाई तो देते हैं
लेकिन सिर्फ रात के अँधेरों में
जिनके कुछ चमकती लकीरे तो हैं
लेकिन सिर्फ कभी-कभी ही दिखाई देती है
लेकिन उनका चमचमाहट कोई छिन नहीं सकता
जिसके बारे में हर किसी को पता है
इसी तरह तुम भी हो
तुम अपने किस्मत से कभी मत भागो
तुम अपने प्रकाश को कभी कम नहीं होने दो
तुम अपनी प्रतिभा को छुपाओ नहीं
उसे सभी के समक्ष प्रदर्शित करो
क्योंकि तुम्हें ये मालूम है
की समय किसी का अनुसरण नहीं करता
अगर तुम्हें अपनी पहचान बनानी है
तो सबसे पहले सबके मन को जीतो
अगर तुमने ऐसा कर लिया
तो समझो की तुम अपने मंज़िल के करीब आ गए
रास्ते अनेक हैं, मंज़िलें बस एक हैं
और समय तेरे पास बहुत ही कम है
और तुम अगर तुम अपनी मंज़िल को पाना चाहते हो
तो यही सही मौका है
जिसका तुम्हें सही उपयोग करके
आगे की ओर बढ़ना है
क्योंकि सब तुम्हें आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं
एक शायर ने कहा हुआ है --
“कोई साथ रहे या ना रहे, चलना तुम्हें आता है !
तुम आग से वाकिफ़ हो, डरना तुम्हें आता है !”

शुक्रवार, 12 जून 2015

गमों की परछाईं

गुनाहों के दरम्यान मैं चलता रहा फिर भी,
ये सोचकर एक मुस्कान मिल जाए मुझे कहीं ।
ना जाने किस ओर छिपी है मेरी मंजिल
जानना चाहता हूँ अपने दिल से ही ।
मेरी अधूरी कहानी ना जाने कब पूरी होगी
यूँ पहचान कब दोस्तों में बनेगी ।
मैं भी मौज-मस्ती में जिन्दगी जीना चाहता हूँ
खुशियों को दिल में बसाना चाहता हूँ ।
मैं उन सब को भूल जाना चाहता हूँ
जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए दोस्त बनाया ।
मैं उनके साथ रहना चाहता हूँ
जिन्होंने अपने दिल में बसाया ।
मेरी आदतें ना बुरी हैं और नहीं चाहतें
मेरे दिल में सबके लिए है एक जैसी मोहब्बतें ।
अच्छे के लिए मैं अच्छा हूँ और बुरों के लिए बुरा
प्यार अगर आता है तो नफ़रत भी बहुत ज्यादा ।

सोमवार, 1 जून 2015

बिखड़ी हुई राख़

तेरे साथ वक़्त बिताने को मैं सोच रहा था
पर तेरे इरादे को मैं समझ नहीं पाया !
तुमने मुझे ठुकराया इस तरह
की मैं खुद को भी रोक नहीं पाया !
अक्स निकलने लगे नैनों से कुछ इस तरह
की दिल को भी समझा नहीं पाया !
पता नहीं, क्यूँ इस तरह मैं करने लगा ?
तेरे लिए भावनाओं में क्यूँ बहने लगा ?
जानता हूँ तुम कभी मिलोगी नहीं
फिर दिल तेरा इंतज़ार क्यूँ करने लगा ?
अब कुछ इस तरह मैं बदलना चाहता हूँ !
मैं खुद को सबसे अलग कहना चाहता हूँ !
रहना चाहता हूँ सबसे अलग !
जैसे न हो दुनिया की खबर !
मेरे दोस्ती से जिसे कोई नहीं है वास्ता !
कहना चाहता हूँ उसे हज़ार नया है रास्ता !
मेरी ज़िंदगी में कई नए साथी मिले
कई पुराने साथी अभी तक साथ हैं !
मुझे भरोसा है उन दोस्तों पर
जो और आगे तक साथ रहेंगे !
मैं नहीं याद रखना चाहता उन दोस्तों को
जिनका साथ अब नहीं है,
या फिर जिन्होंने साथ छोड़ दिया !
मेरी याद में वो हमेशा याद बनकर रहेंगे
क्योंकि हम अब कभी साथ नहीं रहेंगे !
मोहब्बत मेरे लिए उनके दिल में भी होगी
और मेरे दिल में भी उनके लिए मोहब्बत रहेगी !

शुक्रवार, 29 मई 2015

काश ! आप हमारे होते

यूं तड़प-तड़प कर जी रहा था
उनको याद करके इस तरह
ना जाने वो कौन-सा पल था     
जिस पल वो मिली थी मुझे इस तरह
क्यों हम जी रहे हैं मर-मर के इस तरह
जो आप हमारे नहीं हैं ज़िंदगी में इस तरह
आपको सोच कर क्यों रो रहा हूँ
पता नहीं मैं क्या कर रहा हूँ
दिल से आपको करीब क्यों मान लिया
अंधेरे में किसे जान-पहचान लिया
वो कौन-सा साया था जो दूर हो गया
और मैं क्यों इतना मजबूर हो गया
अपनों में दिखी एक परछाईं थी
जो घबराई और शर्मायी थी
अब दूर जाना चाहता हूँ मैं आपसे
दूर उस जहान में
जहां मंज़िल तो हो मेरी
पर न तड़पूँ तेरी याद में !!

मंगलवार, 12 मई 2015

दिल की बात

एक खत लिखा था
उस हसीन मुखड़े के ख्याल में
जिसे हर क्षण सोचा करता था
लेकिन अब ऐसा लग रहा है
मैं गलतफहमी में जी रहा था
उसके ख्याल में कोई और था
जिसे मैंने सबसे करीबी साथी समझा था
उसने किसी और को अपना साथी माना था
खत था मेरा प्यारा-सा
जिसमे बंधा था उसका एहसास
जिसमे संग थी मेरी दिल की आवाज़
जो कह रहा था चीख-चीख के
जो पूछ रहा है तुमसे
कैसे हो तुम, कैसी चल रही है तुम्हारी ज़िंदगी ?
क्या तुम्हें मुझसे मिलने का दिल नहीं करता ?
क्या तुम मुझसे दोस्ती नहीं निभा सकते ?
लेकिन मैं ये नहीं जानता था
की भावनाओं के संग लिखा गया ये खत
जब पहुंचेगा उस साथी के पास
तो जवाब में भावना ही नहीं
अक्स और रक्त में भी उबाल ला देगा
जो सहन नहीं हो सकता
यूं बार-बार चोट खाने से अच्छा है
की एक बार गहरा जख्म आ जाये
और उसे पूरी तरह भूल कर
एक अच्छे और सच्चे दोस्त की तलाश करूँ
जो हमेशा साथ दे सके
जिससे दिल की बात साझा कर सकूँ !!

मंगलवार, 5 मई 2015

मेरी आवाज़ सुनो

मैं हूँ वो साथी
जिसे हर कोई पाना चाहता हैं !
मैं हूँ वो पहचान
जिसके साथ हर कोई जीना चाहते हैं !
मैं हूँ वो सारथी
जिसके साथ हर कोई चलना चाहते हैं !
मैं हूँ वो आवाज़
जिसे हर कोई सुनना चाहते हैं !
मैं हूँ वो कदम
जिसके साथ हर कोई मिलकर रहना चाहते हैं !
मैं हूँ वो हवा
जिसके साथ हर कोई हर जगह रहना चाहते हैं !
लेकिन अब मैं वो हूँ
जिसे न कोई जानता है
न कोई पहचानता है
अब न मेरी कोई पहचान है
न कोई साथी है और न कोई सारथी है !
न ही ऐसी आवाज़ है
और कदम भी हवा में लड़खड़ा रहे हैं
की पता ही नहीं चल रहा
मैं कहाँ जाऊँ और कहाँ नहीं जाऊँ ?

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

मुझसे मत भागो

जो तेरे अंदर बसा है वो भी मैं हूँ
जो तेरे मन में छिपा है वो भी मैं हूँ
जो तू करने वाला है वो भी मैं हूँ
जो तू कर चुका है वो भी मैं हूँ
जो तेरे दिल में है वो भी मैं हूँ
जिसे तुमने मन से निकाला वो भी मैं हूँ
जिससे तुम प्रेम करते हो वो भी मैं हूँ
जिसे तुमने छोड़ दिया वो भी मैं हूँ
जो तेरा कल था वो भी मैं हूँ
जो तेरा आज है वो भी मैं हूँ
और जो तेरा आने वाला कल होगा वो भी मैं हूँ
जिसे तुमने जाना, पहचाना वो भी मैं हूँ
जिसे तुमने नकार दिया वो भी मैं हूँ
जिस पथ पर चल रहे हो वो भी मैं हूँ
जिस पथ से चलकर आए हो वो भी मैं हूँ
हर जगह मैं हूँ, और हर किसी के रग में मैं ही हूँ
इसलिए मुझसे मत भागो
मैं उन सभी जगह पर हूँ जहां तक तुम्हारी नज़र है
और जो तुम्हारी नज़रों से कोषो दूर हूँ
मैं मन के अंदर भी रहता हूँ
मैं मन के बाहर भी रहता हूँ
मैं सभी में वास भी करता हूँ
और मैं सभी को वस में भी करता हूँ

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

क्यों बन गयी दूरी ?

,
कुछ क्षणों के लिए मैं भी घबरा-सा इस तरह गया
की समझ ना क्या करूँ और क्या नहीं करूँ ?
जब मैंने देखा आँखें खोल कर
तो लगा जैसे मैं नए सवेरे में हूँ
लेकिन मैं नहीं जानता था की मैं अंधेरे में हूँ
मैं सारथी बनना चाहता था उस अर्जुन का
जिसे मैं जानता तो था
लेकिन मैं पहचानता नहीं था
क्योंकि इस मासूम चेहरे के आगे नकाब था
जो आज तक मैंने नहीं देखा था
क्योंकि मैंने अर्जुन से मित्रता की थी
जिसे मैं दिल से निभाना चाहता था
और मैं किसी प्रकार से शक नहीं करना चाहता था
लेकिन मैं आज उस दोराहे पर खड़ा हूँ
जहां से ना पीछे जा सकता हूँ
और ना ही आगे बढ़ सकता हूँ
पर कुछ साथी ऐसे होते हैं
जो आपसी रिश्ते में कभी कड़वाहट नहीं लाना चाहते हैं
और पूरे दिल से निभाने की कोशिश करते हैं
और सहायता करके आपके साथ हो जाते हैं
आज मुझे भी एक ऐसा ही साथी मिला
जिसने रिश्ते बनाए रखा
और तोड़कर कड़वाहट नहीं आने दी
मैं भी खुश हुआ और उसे भी खुशी हुई !

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

मधुर प्रेम


उनके लबों पर जाने किसका नाम था
लेकिन मेरे दिल में सिर्फ उनका नाम था
जब भी सोचता हूँ, उनको ही सोचता हूँ
जब भी याद आती है, उनकी ही याद आती है
क्योंकि प्रेम किसी संकेत के साथ नहीं होता है
प्रेम किसी आधार पर नहीं होता है
प्रेम वो रस है जिसका स्वाद हर कोई लेना चाहता है
प्रेम के बिना ज़िंदगी अधूरी है
प्रेम दोस्ती में भी होता है
प्रेम सम्बन्धों, परिवार जनों से भी होता है
मैंने भी प्रेम किया है उनसे
जिन्हें जानता हूँ, जिन्हें पहचानता हूँ
क्योंकि अगर आप ज़िंदगी खुशी से जीना चाहते हैं
तो ज़िंदगी में प्रेम लाएँ
नहीं तो आप नकारात्मक सोच के साथ जीने लगेंगे
जो आप और हम नहीं चाहते हैं

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

दिल की चाहत


खौफनाक नज़ारे देख-देख कर ज़िंदा रहा ये दिल
फिर न जाने इस कदर क्यूँ डर रहा है ये दिल !
तुझसे नाता जोड़ा था जब मैंने तुम्हें मिलकर
फिर क्यूँ दूर होना चाहती हो,
खुद से डरकर या बातों में आकर ?
अपने आप को गिरता हुआ देखकर डर ऐसे लग रहा
जिसे अच्छा साथी माना उसने दूर रहना बेहतर समझा !
माना की मुझमे इतनी ताकत नहीं की
सबसे ज़ुदा होने का साहस बनाए रखूँ
लेकिन क्या किसी से प्यार करने की भी ताकत नहीं ?
क्यूँ किसी को लगता है मैं किसी लायक नहीं
मैं भी ज़िंदगी में खुशी से रहना चाहता हूँ
किसी के खुशी के खातिर जीना चाहता हूँ !
आज तक ये एहसास न था की
किसी से दिल टूटने पर कैसा एहसास होता है ?
लेकिन अचानक मेरे एक करीबी ने
ये बता दिया की मैं कैसा हूँ ?
मैं आज उस मोड़ पर खड़ा हूँ
जहां से सिर्फ मौत के मंजर नज़र आते हैं
मैंने अब तक ऐसे बहुत से ठोकर खाये हैं
जो किस्से की तरह अब तक मेरे दिल में हैं !
जी रहा हूँ मर-मरकर मैं अब तक ऐसे
खुल के अब जीना चाहता हूँ दोस्तों के जैसे !
कुछ सपने मेरे भी हैं, कुछ इरादे मेरे भी हैं
जिनको पूरी करने की तमन्ना मेरे दिल में हैं  !

मंगलवार, 31 मार्च 2015

रहस्य ज़िंदगी का


मेरे जीवन का एक ऐसा रहस्य
जो किसी को मालूम नहीं है
जो मैंने आज तक बताया नहीं है
आज बता रहा हूँ तुम सब को
इसलिए क्योंकि अब मैं कुछ भी
पर्दे के पीछे नहीं रख सकता
जानता हूँ तुम सब उत्सुक भी हो
और तुम सब मस्तमौला भी
मैं भी चंचल था, उत्साहित था
पर मुझे ये पता नहीं था
फिर भी डर लगता था
की मैं क्यूँ उस मुट्ठी में बंद हूँ
मैं क्यूँ उस कमरे तक बंधा हुआ हूँ
जिससे बाहर नहीं आ सकता
मैं भी आज़ाद पंछी की तरह रहना चाहता हूँ
मैं भी खुले गगन में उड़ना चाहता हूँ
मैं भी सबको बताना चाहता हूँ
की मेरे अंदर भी एक कला छुपी है
जो एक रहस्य की तरह है
जो मैं भी नहीं जानता
जिसे मैं बाहर निकालना चाहता
पर मैं क्या करूँ
मैं ऐसे माहौल में बड़ा हुआ हूँ
जहां अब मेरी सांस अटकती है
जहां मैं अब जीना नहीं चाहता
दोस्त कुछ मेरे साथ हैं
जिनके साथ कुछ वक़्त बिताकर
खुश रहने की कोशिश करता हूँ
खुद को नए माहौल में ढालना चाहता हूँ
लेकिन अब ज़िंदगी ऐसे मुकाम पर है
जहां से पीछे नहीं आ सकता
और अब मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा !!

शनिवार, 28 मार्च 2015

मेरे जीवनसाथी


इन दिनों नियमित कार्यों में दिल नहीं लग रहे
आश्चर्य होता है हम नजदीक नहीं आ पा रहे
सोच में बसा है वो मुखड़ा, जिसे हम तलाश रहे !!

आज भी याद है मुझे, जब हम पहली दफा मिले थे
हर वक़्त बातों के संग एक-दूसरे में मग्न रहते थे
सुबह-शाम प्रेम का किनारा हम फिर भी तलाश रहे !!

मेरे हमसफर, तुम मेरे जीवनसाथी बन जा
अपने दिल में बसा ले, और खुद को भी भूल जा
न जाने फिर हम कब मिले, जिसका प्रयास हमें रहे !!

हम और तुम आज मिले हैं, इसे जी भर के जी लें
खुशी और ग़म, हर कुछ बाँट लें
वक़्त के इस संगम में मुलाकात बाकी न रहे !!

शनिवार, 7 मार्च 2015

लफ्जों में छुपी दास्तां


एक ऐसे कुटिया में मैं
रहता था परिवार के संग
जिसके दीवार थी टूटी-फूटी
खिड़कीयों में थे झाले पड़े
न जाने वो कौन-सा कमरा था
जिसमे मैं जाने से डरता था
सपने थे ऐसे बड़े-बड़े
जो न जाने कब पूरे होते
मैं मेहनत इतनी करता हूँ
फिर भी अपनों को
खुशी नहीं दे पाता हूँ
हर रोज़ उसे जब मैं
निहारता हूँ
ये समझ न पाता हूँ
कब मिलेगी मुझे बड़ी खुशी ?

घर से जब निकलता हूँ
तो ये सोचता रहता हूँ
क्या आज दो वक़्त की
रोटी नसीब होगी ?
क्या आज चैन से सो पाऊँगा ?
गर्म हवा जब चलती बाहर
पसीने निकलते जब मेरे
मेहनत इतना मैं करता हूँ
फिर कीमत मिलते क्यूँ आधे मुझे ?
सुन ले ज़रा मेरे खुदा
मेरी बस इतनी इच्छा है
अपना छोटा-सा घर चाहता हूँ
बदन पर ढंग के कपड़े मांगता हूँ
परिवार रहे बड़े प्यार से
कभी न हो आपस में झगड़े
मैं तेरी तरह धनवान तो नहीं हूँ
लेकिन इतना धन तो दे मुझे
की अपनों को खुशी से रख सकूँ !

बुधवार, 4 मार्च 2015

निर्बल मन


मैं था एक बेजान पौधा
समझता नहीं था मानवों की भाषा !
नाजुक था, कमजोर था
किसी पे न मेरा ज़ोर था !
जब आया था मानवो के लोक में
तब मैं था स्वस्थ्य और सुशील !
उस वक़्त मैं ये जानता था
की भविष्य में होगी ऐसी दुर्गति !
मैं अब ये सोचता हूँ
की मैं आया ही क्यूँ ऐसे लोक में
जहां न मिल रहा मुझे सम्मान !
जहां हर घड़ी हो रहा मेरा अपमान !
निर्बल हूँ, असहाय हूँ    
इसका अर्थ ये तो नहीं की
मैं कार्य के काबिल न हूँ !
मुझसे है तुम्हारी ज़िंदगी
मुझसे मिलती है तुम्हें हर खुशी
फिर क्यूँ लेते हो तुम मेरी जान ?
क्या तुम्हारे पास नहीं है कोई समाधान !