रविवार, 4 सितंबर 2022

गुमशुम मन

बाहर ठंडी बयार चल रही थी।

साथ में बारिश की बौछारें भी शोर कर रही थी।

घरों में पानी की बूंदें भी ऐसे गिर रही थी

मानो जैसे ऊपर वाले द्वारा

इंसानों की इम्तिहान ली जा रही थी। 


पुरूष अपने कामकाज में व्यस्त थे

स्त्रियां ललाट पर केशों को

समेटते हुए रसोइ मेंं दिखाई दे रही थी।

हम ये सोचने मेंं लगे थे

क्यों नहीं हमारी सोच

अच्छे सोच विचार कर रही थी। 


यही सोचते सोचते जैसे ही

आसमान में हमारी नजर गई

काली बदरी भी गायब हो चुकी थी।

कुछ देर के बाद,

एकाध घरों से पर्दे भी हट गए थे

और कामकाजी लोगों की

आवाजाही भी सामान्य ढांचे में

नजर आने लग गई थी।