शुक्रवार, 29 मई 2015

काश ! आप हमारे होते

यूं तड़प-तड़प कर जी रहा था
उनको याद करके इस तरह
ना जाने वो कौन-सा पल था     
जिस पल वो मिली थी मुझे इस तरह
क्यों हम जी रहे हैं मर-मर के इस तरह
जो आप हमारे नहीं हैं ज़िंदगी में इस तरह
आपको सोच कर क्यों रो रहा हूँ
पता नहीं मैं क्या कर रहा हूँ
दिल से आपको करीब क्यों मान लिया
अंधेरे में किसे जान-पहचान लिया
वो कौन-सा साया था जो दूर हो गया
और मैं क्यों इतना मजबूर हो गया
अपनों में दिखी एक परछाईं थी
जो घबराई और शर्मायी थी
अब दूर जाना चाहता हूँ मैं आपसे
दूर उस जहान में
जहां मंज़िल तो हो मेरी
पर न तड़पूँ तेरी याद में !!

मंगलवार, 12 मई 2015

दिल की बात

एक खत लिखा था
उस हसीन मुखड़े के ख्याल में
जिसे हर क्षण सोचा करता था
लेकिन अब ऐसा लग रहा है
मैं गलतफहमी में जी रहा था
उसके ख्याल में कोई और था
जिसे मैंने सबसे करीबी साथी समझा था
उसने किसी और को अपना साथी माना था
खत था मेरा प्यारा-सा
जिसमे बंधा था उसका एहसास
जिसमे संग थी मेरी दिल की आवाज़
जो कह रहा था चीख-चीख के
जो पूछ रहा है तुमसे
कैसे हो तुम, कैसी चल रही है तुम्हारी ज़िंदगी ?
क्या तुम्हें मुझसे मिलने का दिल नहीं करता ?
क्या तुम मुझसे दोस्ती नहीं निभा सकते ?
लेकिन मैं ये नहीं जानता था
की भावनाओं के संग लिखा गया ये खत
जब पहुंचेगा उस साथी के पास
तो जवाब में भावना ही नहीं
अक्स और रक्त में भी उबाल ला देगा
जो सहन नहीं हो सकता
यूं बार-बार चोट खाने से अच्छा है
की एक बार गहरा जख्म आ जाये
और उसे पूरी तरह भूल कर
एक अच्छे और सच्चे दोस्त की तलाश करूँ
जो हमेशा साथ दे सके
जिससे दिल की बात साझा कर सकूँ !!

मंगलवार, 5 मई 2015

मेरी आवाज़ सुनो

मैं हूँ वो साथी
जिसे हर कोई पाना चाहता हैं !
मैं हूँ वो पहचान
जिसके साथ हर कोई जीना चाहते हैं !
मैं हूँ वो सारथी
जिसके साथ हर कोई चलना चाहते हैं !
मैं हूँ वो आवाज़
जिसे हर कोई सुनना चाहते हैं !
मैं हूँ वो कदम
जिसके साथ हर कोई मिलकर रहना चाहते हैं !
मैं हूँ वो हवा
जिसके साथ हर कोई हर जगह रहना चाहते हैं !
लेकिन अब मैं वो हूँ
जिसे न कोई जानता है
न कोई पहचानता है
अब न मेरी कोई पहचान है
न कोई साथी है और न कोई सारथी है !
न ही ऐसी आवाज़ है
और कदम भी हवा में लड़खड़ा रहे हैं
की पता ही नहीं चल रहा
मैं कहाँ जाऊँ और कहाँ नहीं जाऊँ ?