बुधवार, 20 नवंबर 2019

अनसुलझी पहेली

कुछ अनसुलझी बातों को सुलझाने चला
बातों ही बातों में उसे मनाने चला।
छोड़ दो ये जिद्द, करो कुछ प्यार भरी बातें
क्या हो गई खता, जो नहीं हो रही कुछ बातें।
उसने जवाब दिया कुछ इस अंदाज में
जैसे राज छुपे थे उसके हर बात में।
नहीं पता तुम क्या चाहते हो, क्या है तुम्हारे दिल में
बता दिया होता तो नहीं होते तेरे दिल में।
बस नजरें मिलाई थी, जरा-सा मुस्कुराया था
कुछ बातें तुम्हारी सुनी थी, कुछ बातें तुम्हें बताया था।
क्यों रूठ गई, क्यों छूट गई, कुछ तो बात बता दो
अब न होगी कभी खता, चलो अपना हाल बता दो।
मेरी खबर मत पूछो, कोई भरोसे के काबिल नहीं
रास्ता वही, मंजिल वही, बस अनजानों का साहिल नहीं।
अनजानों की फिक्र छोड़ो, अपनों के साथ रहो
फिर से आपस का हाल जान लिया, अब सुकून के साथ रहो।