सोमवार, 10 जनवरी 2022

मन का प्रेम भाव

नया नवेला जोड़ा जो हौले हौले शरमा रहा।
जैसे नीले गगन में चंद्रमा काले मेघा में छिप रहा।।
मनमोहक मुखड़े को देख जो मंद मंद मुस्कुरा रहा।
वो अपना हाल कुछ इस तरह बता रहा।।

प्रेम है वो बचपन का जिससे विवाह रचा लिया।
मंत्रमुग्ध था जिसके विचारों में, उसे जीवनसाथी बना लिया।।
मृगनयनी वो, प्रिय रूप वाली, प्रियसी उसे ही बना लिया।
चार दिवस हुए विवाह को, पर घबराहट अब तक नहीं जा रहा।।

ऐ प्राणनाथ, ऐ प्रियवर मेरे, उधर कहाँ तुम घूम रहे।
तुमसे करनी है कुछ बातें मुझे, तुम्हें कब से ढूंढ रहे।।
चलो नजदीक आ जाओ तुम मेरे, समय को बहुत नष्ट कर लिया।
जब से बंधे हैं वैवाहिक बंधन में, मौन रहकर काम चल रहा।।

सुनो प्रिय! एक वचन दो मुझे, किसी से ये बात नहीं कहोगी।
डर लग रहा है, थोड़ा परेशान हूँ, यदि तुम सुनना चाहोगी।।
पहले जरा-सा मुस्कुरा दो, बहुत हिम्मत से मैं कह रहा।
करता हूँ बहुत प्रेम तुमसे, पहली बार हृदय से तुम्हें बता रहा।।

प्रेम संबंध बचपन से बहुत मजबूत रहे, अब ये वैवाहिक रिश्ते से जुड़ गए।
था कठिन पर थोड़ी हिम्मत की, और हम एक दूसरे के हो गए।।
बहुत समय नष्ट कर लिया, अब अपने हृदय के भाव को कह रहा।
जितना तुम करती हो प्रेम मुझसे, मैं भी उतना ही तुमसे हमेशा से कर रहा।।