सोमवार, 12 फ़रवरी 2024
कहानी ... कुछ सवालों के साथ
सोमवार, 26 जून 2023
कुबूल है
वो लम्हें जो साथ बिताए
वो बातें जो साथ हुई
वो मुलाकातें जो हमने की
क्या तुम्हें कुबूल है?
वो हंसी ठहाके जो संग लगाए
वो हर पल जो खुशी से बीते
वो अपनी जो एक अच्छी यारी हुई
क्या तुम्हें कुबूल है?
वो वादे जो एक दूसरे से हमने लिए
वो कसमें जो साथ मिलकर खाई
वो नए रिश्ते जो हमारे बने
क्या तुम्हें कुबूल है?
वो रूठना मनाना जो हमने किया
वो दूर होकर पास आना जो हमेशा होते रहा
वो हर मुलाकात जो प्यारा बना
क्या तुम्हें कुबूल है?
रविवार, 23 अक्तूबर 2022
सुकून भरे कुछ पल
नदियां किनारे हैं बयार चल रही
आंधियां कितनी जोरों से बह रही।
हम भी इसका आनंद ले रहे
इस पल को खुलकर जी रहे।
बदलते मौसम में जो उपवन खिल रहे
फूलों के बागियों में मुस्कान ला रहे।
थोड़ी देर रूककर जब हम थोड़ा आगे बढ़े
बदलते हुए नजारों के संग हम चल पड़े।
कुदरती दांव पेच को जब समझना चाहा
लोगों ने मुस्कुराकर इससे किनारा कर लिया।
कहा- "ठहर जा, जरा संभल कर चल
इतनी तेज गति से तो मत निकल।"
हमने ये सब बातें सुन तो ली
पर समझ नहीं आ रहा, ये सही है या नहीं।
कुछ देर बाद इस सोच में डूब गए
लगता है साधारण छवि देखकर सब हमें छोड़ गए।
गंतव्य स्थान पर जब हम पहुंचे
चेहरे के हाव-भाव देख सवाल हुए कुछ ऐसे।
इतनी देर कहां लगा दी, कहां चले गए थे तुम
मिजाज भी बदला हुआ-सा है, लग भी रहे हो कुछ गुमसुम।
हमने भी जवाब दिया ऐसा, वो भी नहीं हुए परेशान
बताया थोड़े थक गए हैं, इसलिए हैं ये उदासी भरे निशान।