गुरुवार, 29 नवंबर 2018

गुज़ारिश: एक छोटी-सी नींव की

इंसान की इंसानियत, कहाँ खत्म हो गई ।
जिसने इस दुनिया में तुम्हें लाया, उसी से कैसे गलती हो गई ।
अगर वो होता नासमझ, तो तुम इस जहां में न होते
तुम्हारी सोच और समझ, क्या तुझसे अलग हो गई ।

खुदा से सभी डरते हैं, लेकिन तुझमें डर ही नहीं बचा
ऐसे में कहीं के नहीं रहोगे, अगर किस्मत का साथ नहीं रहा ।
तुमने पत्थर दिल बनकर, भावनाओं को किधर छोड़ दी
क्या तेरे साथ देने वालों के, सीने में भी दिल नहीं रह गई ।

ख्वाब पूरे होने के इंतज़ार में, जज़्बातों से खेलते रहे
क्या कोई हमसे ख़ता हो गई, जिससे हम अंजान रहे ।
इतने मशगूल किस चीज में हो, कि पहचानने की शक्ति खत्म हो गई
किस इंसान को इस बात पर अफसोस है, कि उसे इस जहां में लाने वाले की गलती हो गई ।

गुज़ारिश है उन लोगों से, जिसने अपनों को पराया समझ लिया
परंतु मैं सहम जाता हूं उन बातों से भी, जिसने इंसान को इंसान न समझा ।
हमारे परवरिश या प्रेम में, क्या कमी रह गई
मासूम थे हम या मासूम थे वो, जिसके कारण सबसे दूर हो गई ।

शनिवार, 4 अगस्त 2018

वक्त का संघर्ष

तु चला जा पीछे वक्त
संभाल अपने समय को
मैं संभाल लूंगा अपने आप को |
मत कर मुझे परेशान
मेरे गुजरे हुए वक्त को लेकर
मैं नहीं चाहता
कोई देखे मेरे बिगड़े हुए छाप को |
लो आ गया मौसम
तेरे करतब दिखाने का
भीड़ कहीं छोड़ न दे
तेरे चेहरे पर थाप को |
तेरे कर्म अच्छे हैं
तेरे धर्म अच्छे हैं
यही वक्त है तेरा
मिटा ले अपने पाप को |
लड़ाई में तेरे सभी साथ हैं
जान ले तु इस बात को
मिटाकर तुझे कोई छोड़ न दे
तेरे कल और आज को |

शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

रूठी किस्मत

एक क्षण को मैं गिरा |
फिर संभला
लेकिन ऐसा लगा
जैसे किसी ने हाथ न थामा |
फिर कुछ दूर और चल पड़ा
अपनी मंजिल के पास |
भरपूर ताकत के साथ |
तुने जब छोड़ दिया
रुख जैसे मोड़ लिया |
फिर जैसे पानी की
बूंदे गिरती रही |
आवाज किसी ने
जैसे न सुनी |
मैं लड़ता रहा
खुद के साथ |
हौसला न टूटे
आज के बाद |
तभी एक फैसला हुआ
सबके साथ एकता हुआ |
तब उसने मुझे बल दिया
फिर कभी न फिसल पाया |

शनिवार, 24 मार्च 2018

विद्रोह की आग

मैं बेखबर था, अपने शहर से
मैं शांत था, अपने कर्मों से |
पर जब कुछ असामान्य लोगों ने
हमारे शहर को खत्म कर दिया
तब मेरे अंदर का शत्रु जाग गया |
मेरे मित्रों ने, मेरे करीबी लोगों ने मुझे समझाया
लेकिन मेरा क्रोध फिर भी कम न हुआ
और मैं प्रतिषोध के लिए निकल गया |
मैंने ठान लिया और सोच लिया
इस घात का प्रतिघात लेकर ही लौटूंगा |
जिन्होंने हमें यह जख्म दि है
उनकी अब जान जाएगी |
जिन्होंने हमारी आवाज रोकी है
उनकी अब सांस रूकेगी |
जब मैं उनके इलाके पहुंचा
तो पहले खुद को तैयार किया
फिर उन्हें ढूंढना शुरू किया |
कुछ वक्त बीता, कुछ साल बीते
लेकिन उन लोगों को खत्म कर दिया
और तब मेरे अंदर के विद्रोह का आग कम हुआ |