बुधवार, 20 नवंबर 2019

अनसुलझी पहेली

कुछ अनसुलझी बातों को सुलझाने चला
बातों ही बातों में उसे मनाने चला।
छोड़ दो ये जिद्द, करो कुछ प्यार भरी बातें
क्या हो गई खता, जो नहीं हो रही कुछ बातें।
उसने जवाब दिया कुछ इस अंदाज में
जैसे राज छुपे थे उसके हर बात में।
नहीं पता तुम क्या चाहते हो, क्या है तुम्हारे दिल में
बता दिया होता तो नहीं होते तेरे दिल में।
बस नजरें मिलाई थी, जरा-सा मुस्कुराया था
कुछ बातें तुम्हारी सुनी थी, कुछ बातें तुम्हें बताया था।
क्यों रूठ गई, क्यों छूट गई, कुछ तो बात बता दो
अब न होगी कभी खता, चलो अपना हाल बता दो।
मेरी खबर मत पूछो, कोई भरोसे के काबिल नहीं
रास्ता वही, मंजिल वही, बस अनजानों का साहिल नहीं।
अनजानों की फिक्र छोड़ो, अपनों के साथ रहो
फिर से आपस का हाल जान लिया, अब सुकून के साथ रहो।

मंगलवार, 10 सितंबर 2019

आखिरी मुलाकात

हमारी आज आखिरी मुलाकात हुई।
कहने को थे अल्फ़ाज़ बहुत
मगर कुछ भी न बात हुई।

चेहरे थी उदासी भरी
लबों पर थी नमी छाई।
करीब तो थे हम मगर
वक्त ने दूरियां बढ़ाई।

हर वक़्त जो प्यार से पेश आते थे
अचानक बेरूखी से बातें करने लगे।
जब पता किया तीखे तेवर का
तो मालूम चला हमारी अब जरूरत नहीं।

रविवार, 11 अगस्त 2019

नया सफर, नया है डर

आज हमारी दुआ दिल से कुबूल हुई
जो चाहा था खुदा से, वो खुशी मिली ।
अब मुझे जानने चार यार मिले
पूछते हैं हमेशा, कैसी चल रही जिंदगी ।

मैं सवार हुआ उस कश्ती में
जो मेरे लिए थी बिल्कुल नई ।
जो जान चुके थे, परख चुके थे
वो संभाल रहे थे किसी दूसरे छोर से ही ।

मैं ठहरा बेचारा, चल दिया जैसे आवारा
वो कहते रहे, मैं सोचता रहा
क्या डूब जाएगी कश्ती रास्ते में ही ?

पर हौसला बढ़ा, दिल में फैसला हुआ
मैं आगे चला, मन में सोचता चला
अब मुझे रुकना नहीं
चाहे रुकावटें मिले कैसी भी ।

शनिवार, 10 अगस्त 2019

ये कैसी है बेरुखी

उनके अल्फाजों में अचानक बेरूखी नजर आई
वो किस बात से खफा थे, ये समझ नहीं आई ।
कुछ वक्त गुजारे थे हमने उनके साथ
लेकिन ऐसा एहसास नहीं हुआ
उन्होंने कभी हमारे साथ यारी नहीं निभाई ।

कुछ ही वक्त हुए थे उन्हें पहचाने हुए
कभी हम उनको जान नहीं पाए ।
साथ बैठते थे, हर बात साझा करते थे
लेकिन पता नहीं क्यों
वो मन की बात को मन में दबाते चले गए ।

जब हमने पूछा, क्या हुआ है बताओ
वो बोले कुछ नहीं कहना, तकलीफ़ नहीं बढ़ाओ ।
हम अब साथ नहीं, आगे कोई बात नहीं
लबों को हद में रखो, हमें नाराजगी नहीं दिलाओ ।

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

नफ़रत की आजमाईश

बैठे कुछ चंद शरीफ़
मेरे पास आकर ।
मेरे लिए थे सब नए
मैं ये जानकर ।
चुपचाप अकेले में मग्न था
मैं ये सोचकर ।
कैसे लब खोलूं, कैसे कुछ बोलूं
तहज़ीब निभा रहा हूं कायदा मानकर ।
वक्त गुजरा, गुज़र गए दिन
साथ चलने लगे बिना सोचे कुछ भी ।
हंसी थी, खुशी भी थी
पराए क्यों होने लगे अपने जैसे ही ।
एक समय ऐसा आया जब
गुज़ारिश ऐसे होने लगी जैसे ख्वाहिश ।
लबों से जब निकले अलविदा के लफ्ज़
क्या शुरू हो चुकी थी नफ़रत की आजमाईश ।