शनिवार, 10 अगस्त 2019

ये कैसी है बेरुखी

उनके अल्फाजों में अचानक बेरूखी नजर आई
वो किस बात से खफा थे, ये समझ नहीं आई ।
कुछ वक्त गुजारे थे हमने उनके साथ
लेकिन ऐसा एहसास नहीं हुआ
उन्होंने कभी हमारे साथ यारी नहीं निभाई ।

कुछ ही वक्त हुए थे उन्हें पहचाने हुए
कभी हम उनको जान नहीं पाए ।
साथ बैठते थे, हर बात साझा करते थे
लेकिन पता नहीं क्यों
वो मन की बात को मन में दबाते चले गए ।

जब हमने पूछा, क्या हुआ है बताओ
वो बोले कुछ नहीं कहना, तकलीफ़ नहीं बढ़ाओ ।
हम अब साथ नहीं, आगे कोई बात नहीं
लबों को हद में रखो, हमें नाराजगी नहीं दिलाओ ।

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