शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

बुझता दीया

तेरे सिवा दुनिया में कौन था
मेरे लिए खुदा हमेशा ही तु ही था |
मुझे पाकर वो खुश नहीं थे
वो लोग तो अपने लिए जीते थे |
मैंने सोचा न था, एक दिन तुझसे बिछड़ना पड़ेगा
फिर तु मुझे, खोजने के लिए आगे बढ़ेगा |
कुछ लोग तेरे साथ वर्दी में होंगे
तेरा हौसला न टूटे
इसलिए वो तेरा साथ नहीं छोड़ेंगे |
तेरा ध्यान खोजबीन में होगा
तु इस बात से अंजान रहेगा |
मेरे हाल पर तु तब तक नहीं रोयेगा
जब तक मेरा चेहरा तेरे सामने नहीं होगा |
मुझे इस बात की खुशी रहेगी
तेरी मोहब्बत मेरे लिए कभी कम नहीं होगी |
लगातार दरवाजे पर
वर्दीवाले की दस्तक रहेगी
जब तक मैं न मिल जाऊँ
सभी को बैचेनी रहेगी |
मेरी तस्वीर अब तक तेरे दिल में थी
पर अब अखबारों के पन्नों में भी होगी |
अब तुझे ये संतुष्टि रहेगी
तेरी खुशी अब तेरे कमरे में होगी |
वर्दीवालों को कुछ आभास हुआ
मेरा जान तो लगता है जा चुका |
वो ठहरे, वो सोचे
फिर अपने कुछ साथियों के साथ निकले |
देखा, ढूंढा, जाँचा उस जगह को
तो पाया एक बड़ा संदूक |
जब बुलाया गया तुझे
उस सुनसान इलाके में
तो तु घबराया, हिचकिचाया
फिर डर के कारण कुछ नहीं बोल पाया |
जब तेरे सामने ये खबर फरमाया
तो तुझे बहुत रोना आया |
जिसे तुमने इतना प्यार दिया
वही तुझसे बहुत दूर चला गया |

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

भावुक मन

क्यूँ मेरा दिल
अब भी गुमशुम-सा है?
क्या चाहता है
जाने क्या माँगता है?
कैसे कहूँ, कैसे समझाऊँ
जो न पास है
फिर भी क्यूँ ये निराश है?
आज फिर उसी वक्त
ये दिल रूठ गया
कारण न कहा, लेकिन रूठा रहा |
मैं चल दिया अकेले
सुनसान रास्ते पर |
कारण वो ढूंढने
कि क्यों ऐसे है अब तक |
वो डरा, वो सहमा
वो संभला, फिर वो कहा
यादों ने रूला दिया
भूला ना सका उसे
जो था मेरे दिल का |

रविवार, 25 दिसंबर 2016

बदलता रूप

ये मुखड़ा, ये भावुकता,
ये प्यार, ये दिखावा,
लगता है जैसे
हर चीज में मिलावट हो गई है |
एकता में बिखराव
प्यार में बँटवारा
मिलते हैं तो ऐसे
जैसे औपचारिकता हो रही है |
ये सब देखकर
काँप उठता है मन
सिहर उठता है बदन
बदलते रूप को देखकर
जब आँसू निकलते हैं
तो ऐसा लगता है
इंसान अब हैवान हो गया है |

सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

बिखरे हुए रंग

अंधविश्वास के मेले में
तु कहाँ चला आ रहा है?
यहाँ बिक रहे हैं धोखे
टूटे हुए विश्वास
शहर के इस गंदगी को
क्यों नहीं तु समझ पा रहा है?

हर कदम पर बर्बादी
हर कदम पर नशे में यारी
धुंध फैला है हर रास्ते पर
जाऊँ तो जाऊँ किधर?
गली-मोहल्ले, चौक-चौराहे से
क्या तुम्हें रास्ता नजर आ रहा है?

प्रश्न उठ रहे हैं मन में
क्या संकट है इस जीवन में?
पूछूं तो पूछूं किससे
क्या अब नहीं जी सकता खुल के?
हौसला रखने का
क्या अब संयम खो रहा है?

अजीब खेल है इस दुनिया का
कोई है बुरा, कोई है अच्छा |
इस महफिल के अजीब इरादे
यहाँ टूटती हैं कसमें और टूटते हैं वादे |
तमाशबीन बने इन लोगों का
क्या इंसानियत समाप्त हो रहा है? 

बुधवार, 14 सितंबर 2016

एक सवाल ... सिर्फ तुमसे

सवाल करूँ या राय जानूँ?
ये कैसा हृदय है तेरा
तुम इंसान हो या हैवान
जिसे तुम मिटा रहे हो
वही तुम्हारी जननी है |
क्या तुमने कभी सोचा है
अगर ये ना रही
तो तुम कैसे रहोगे?
जिसकी तुम पूजा करते हो
जिसे तुम माँ मानते हो
उसी को समाप्त कर रहे हो |
मेरा हृदय काँप उठता है
जब तुम्हारा ये रूप देखता हूँ
क्या तुम्हें जरा भी दया नहीं आती?
क्या तुझमें इंसानियत नहीं बची?
मैं ये पूछना चाहता हूँ
तुम्हारे मन में ये प्रतिसोध कहाँ से आया
ये सवाल सिर्फ इसलिए
क्योंकि तुझे नींद से जगाना है
और तुम्हारे मन में सकारात्मक सोच लाना है |

रविवार, 11 सितंबर 2016

एक अवसर ...

एक अवसर दो मुझे
मैं तुझे चाहत की चाह दिखा दूंगा |
ये बता दूंगा
दिल से चाहना किसे कहते हैं |

एक अवसर दो मुझे
मैं तुझे अंधेरे में नजारे दिखा दूंगा |
ये बता दूंगा
अंधेरे में रौशनी कैसे लाते हैं |

एक अवसर दो मुझे
मैं तुझे समय की ताकत बता दूंगा |
ये दिखा दूंगा
पल पल में हर पल कैसे बदलते हैं |

एक अवसर दो मुझे
मैं तुझे शांति का महत्व बता दूंगा |
ये बता दूंगा
शांतिपन को महसूस कैसे करते हैं |

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

विचलित मन

नई नवेली दुल्हन
अंदर में चुपचाप बैठी है |
कहने को बहुत सारी बातें
लेकिन दिल से घबरा रही है |
इंतजार है उसे किसी खास का
जो उसका साथ दे सके |
जब मिला उसे चाहने वाला
तो वो होश खो बैठी |
इस शहर में नई नवेली
ना कुछ जानती, ना कुछ पहचानती |
कोई आ जाए उससे मिलने
तो बस शर्माती, हिचकिचाती |
जब हम गए उससे मिलने
तो वो डर गई, सहम गई
फिर ना रूकी, रोते रही |
हमने पूछा - - कहो, क्या हुआ?
वो गले मिली, घबराई हुई
हमसे बोली - - मेरे साथ रहो, कहीं मत जाओ |
उसे संभाला, उसे प्यार दिया
विश्वास दिलाया, फिर उसने मुस्कुरा दिया |

रविवार, 4 सितंबर 2016

गुरूदेव

तुमने सिखाया, तुमने बतलाया |
तुमने बुलाया, तुमने समझाया |
मैं जब तेरे पास आया
घबराये हुए मन को तुमने मार्गदर्शन कराया |

मैं बेबस, मैं लाचार
मैं चंचल, मैं शैतान
मुझे नई चीजें का शौक जब आया |
सही रास्ते पर तब तुमने लाया |

तुमने संवारा, तुमने संभाला
हर मोड़ पर जब मैं लड़खड़ाया |
तुम साथी बने, तुम सारथी बने
मदद करने को तु आगे आया |

शुक्रवार, 17 जून 2016

दिखावे की खुशी

ये हसरत, ये चाहत |
ये आदत, ये मोहब्बत |
ये अक्सर उन गलियों की
मंद-मंद मुस्कुराहट |

ये राहों पर मिलना |
ये मिल कर बिछड़ना |
जब फिर से कहा किसी ने
क्या है दिल की तमन्ना |

मैं ना शर्माई, मैं ना हिचकिचाई |
मैं ना डरी, मैं ना घबराई |
बस कहा दिया सबसे
कोई है, जिसकी याद आई |

मंजिल मिली, रास्ता मिला
मिली जो दिल को उसकी खुशी |
पाया जब खुद को अकेला बेबस
जिन्दगी, तुम्हें सोचकर रो पड़ी |

शुक्रवार, 10 जून 2016

बेबस ज़िन्दगी

मेरी विवशता, मेरी दुर्बलता
मेरा स्नेह, मेरा विचार
मेरी दबी हुई सोच
जिस पर नहीं है मेरा जोर
मेरी भीड़ में बसी है जिन्दगी
जिसकी कहानी है एक जैसी
रोज जब आँख खुलती है
तो एक नई खोज पर ले जाती है
कहती हूँ खुद को संभालो
पर मेरे मन में एक जिद आ चुकी है
मुझे गिर कर संभालना आ गया है
जो किसी ने नहीं बतलाया है
गली-मोहल्ले, चौक-चौराहे
सड़क किनारे कुछ भिखारी
रोते-बिलखते असहाय बच्चे
ऐसी ही है रोज़ की मेरी जिन्दगी
बदल गया संसार सारा
बदल चुकी है अब लोगों की सोच
खत्म हो गई है सबकी तकलीफ
पर कब भरेगी मेरे जीने की चोट
मैं हार गई हूँ, मैं थक चुकी हूँ
लोगों की ताने सुन-सुनकर
पर अब चाहती हूँ ऐसी जिन्दगी
जिसके बाद ना देखूं पीछे मुड़कर ||

सोमवार, 30 मई 2016

सांझ-सवेरा

मेरी हंसी, मेरी खुशी तुम हो|
मेरी आदत, मेरी चाहत तुम हो|
मेरे अंधेरे की रौशनी तुम हो|
मेरी मुस्कान की चांदनी तुम हो|
मेरे लबों की आवाज तुम हो|
मेरे गुमशुमपन का राज तुम हो|
मैं अगर जिन्दा हूँ तो जिंदगी तुम हो|
मैं अगर दिल हूँ तो दिल्लगी तुम हो|
मैं अगर रूठा हूँ तो मना तुम लेना|
मैं अगर गम में हूँ तो खुशी तुम देना|
मैं अगर चला जाऊँ तो रोक तुम लेना|
मैं अगर चुप हूँ तो बोल तुम देना|
मेरी हिम्मत, मेरी ताकत तुम बनना|
मेरी हर जीत की खुशी तुम बनना|
मैं अगर खो जाऊँ तो पास तुम रहना|
मैं अगर दूर रहूँ तो एहसास तुम रहना|
मेरे हर नजर का नजरिया तुम बनना|
मेरी हर खुशी का जरिया तुम बनना|

रविवार, 29 मई 2016

आने वाला पल

जिन्दगी के सफर में
रोज नया तूफान खरा |
तू क्या सोच रहा है
कुछ आगे करके दिखा |

ये पल बीत जाएगा
ये कल कभी न आएगा |
जो बीत गया वो बीत गया
कुछ करने की सोच जरा |

तुमने जो किया अब तक
उसे अपने सोच से हटा दे |
तेरे साथ क्या होगा अब
ये सबको तू बता दे |

तेरी जब कभी ये
ज़िन्दगी बर्बाद होगी |
तु मौत का मुंह का देखेगा
तेरी जब वो हाल होगी |

लंबा सफर तय करना है तूझे
अभी कहीं नहीं पहुँचा है |
इस सफर का अंत ना होगा
तू क्या सोच रहा है |

तेरी स्थिति ठीक नहीं है
कुछ समय के लिए |
इस पल को बर्बाद ना कर
आने वाले समय के लिए |

आने वाले कुछ समय में
लोग बदल जब जायेंगे |
आने वाले पल को जब
लोग समझ ना पाएंगे |

शुक्रवार, 25 मार्च 2016

तड़पता मन, क्रोधित पवन

वो ढूंढती थी, वो सोचती थी,
वो चारो ओर बस घूमती थी
जब हार गयी, जब ना पार गयी
जब ये बात आखिर मान गयी
जब कोई ना दिखा सहारा
जब फिर मन हो गया बेचारा
तो वो थक गयी, वो विवश हुई
आंसुओं के संग वो मग्न हुई
वो रोती रही, बिलखती रही
खुद को खुद से संभालती रही
हर दिन, हर क्षण, हर पहर
बंद कमरे मे तड़पता मन
सब हैं साथ में फिर भी
कैद-सा लगता है जीवन
सहेलियों के संग हूँ,
फिर भी दबी-दबी सी हूँ
अपने आँगन में हूँ,
पर डरी हुई सी हूँ
हर रोज़ जाती हूँ पढ़ने को
शिक्षा-गृह में अपने सहेलियों के संग
वो पूछती हैं रोज़ मुझसे
क्या तकलीफ है, बताओ ना हमें भी
जाते वक़्त ये सोचती हूँ
हर रोज़ की तरह हर पल यही
किससे कहूँ, क्या सब कहूँ
पर मैं आंसुओं को पोछकर
खुशियों में मग्न हो जाती हूँ
ताकि किसी को भनक ना लगे
की मैं किस मुश्किलों में जीती हूँ

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

छूटता आँचल

है शौक वही, पर शौक नयी नहीं
है साथ वही, पर साथ नहीं
हूँ दूर सही, पर मजबूर नहीं
हूँ निर्भीक, पर नजदीक नहीं
है ये सब विचार उस मन से
है एक सवाल उन सब जन से
जो आ रहे हैं या जो जा रहे हैं
क्या वो मेरे हैं या क्या वो आपके थे ?
मित्र कहूँ या शत्रु, समझ नहीं मुझे आ रहा
पर मैं हूँ शांत, है एक विश्वास
आने-जाने वालों पर नहीं,
खुद पर है विश्वास
मेरा एक साथी है
जो समंदर के दूसरी छोर पर बैठा है
एक ऐसे छोर पर बैठा है
जहां से वो सिर्फ ये देख रहा है
ये सोच रहा है
की वो दिन कब आएगा
जिस दिन वो मुझसे मिल पाएगा

सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

टूटी सड़क......(अर्धसत्य)

तुझमे और मुझमे बहुत फर्क है यारा
तू दिल के लिए खुश है
और मैं दिल से बहुत खुश हूँ
तुझे अपनों के साथ प्यार मिला
और मुझे गैरो ने हंसा दिया
रूठे यार को मनाना मुझे आता नहीं
और यार रूठ जाये तो मैं रह सकता नहीं
मेरे विचार कैसे बदल गए
ये मैं भी नहीं समझ पाया
जब ढूँढना चाहा खुद को
तो आईने में तड़पता चेहरा नज़र आया
ज़िंदगी में खुशी और हंसी सभी को चाहिए
तूने खुद को खुशी के माहौल में ढाले रखा
और मैं बेचैनी से खुशी तलाशता रहा
तू ज़िंदगी को करीब से जान रहा
पर मैं ज़िंदगी को करीब आने से रोक रहा
हर दिन हर पल यही सोचता हूँ
की जब कोई खुशी से मेरे साथ होगी
तो क्या मैं संयम के साथ रह पाऊँगा
पर एक ऐसा शख्स भी मुझे मिला
जिसने मुझे वो सब कुछ फिर से सिखाया
जो मैं हर समय से चाहता था
उसने मुझे जीना सिखाया
जीने के साथ हँसना सिखाया
और मुझसे बोला
अब खुद को कभी अंधेरे मे मत रखना
मैं तुम्हारे साथ हूँ
मैं तुम्हें प्यार दूँगा
मैं तुम्हारा सच्चा यार बनूँगा
पर तुम कभी आँसू मत बहाना
पर कभी-कभी ऐसा सोचता हूँ
क्या सच में ऐसा है ?
क्या सच में ऐसा होगा ?
लेकिन जब बीते हुए,
दर्द भरे लम्हे याद आते हैं
तो अचानक ऐसा ख्याल आ जाता है
जब मेरा दिल किसी के काबिल नहीं
जब मेरी हंसी किसी की खुशी नहीं
तो किसी के साथ मेरा जुड़े रहना जायज़ नहीं

रविवार, 31 जनवरी 2016

प्यार है या नशा ?

क्यूँ हो गया हूँ मैं गुमशुम ?
क्यूँ खो गया चैन और सुकून ?
क्यूँ लगने लगी है अब दूरी ?
क्या है मेरी मजबूरी ?
क्यूँ इस कदर मैं बेचैन हूँ ?
क्यूँ खुद से ही मैं परेशान हूँ ?
क्या दिलों में बसती है ज़िंदगी ?
क्या मुश्किलों में ही दिखती है हस्ती ?
मन में ऐसे सवाल क्यूँ आने लगे हैं
जैसे किसी को हम चाहने लगे हैं
लग रहा है जैसे
किसी के चाहतों ने पुकारा है
उलझनों के घेरे में
फंस गया ये दिल बेचारा है
प्यार हुआ तो ऐसा लगा
जैसे आखिर किसी ने
मुझे भी समझ लिया हो
मुझे अपना मान लिया हो
अब जब उसे सोचता हूँ
तो एक बेचैनी-सी होने लगती है
ऐसा क्यूँ लग रहा है
जैसे इश्क़ के तूफान किसी
खूबसूरत किनारे पर ले गए हो
जहां सूनेपन में भी खुशी हो
जहां उसके साथ ही समय
बिताने में ही दिल लग रहा हो
पर ज़िंदगी के साथ मौत से भी
इस तूफान में डर लग रहा हो
आखिर किसी ने सच ही तो कहा है ––
“मोहब्बत ना करना ज़िंदगी में !
बहुत ग़म भरे हैं इस दिल्लगी में !”

रविवार, 24 जनवरी 2016

सजा-ए-ज़िंदगी

ऐ खुदा कभी तू प्यार की सजा भी जड़ देना !
तख्ते पे मौत को आखिरी सजा बता देना !
मोहब्बत करना अगर गुनाह है,
तो इस गुनाह को किसी की ज़िंदगी ना बनने देना !
हमने ज़िंदगी में बहुत सजा पाया है !
ज़िंदगी को चढ़ते-उतरते देखा है !
पराए अक्सर अपने हो जाते हैं,
पर अपनों को ही दूर जाते देखा है !
मुसकुराते हुए हर पल को जीना चाहता हूँ !
हर पल को एक नया सहारा देना चाहता हूँ !
पहला पल अगर आखिरी है,
तो इस आखिरी पल को नया नज़ारा देना चाहता हूँ !
मुझे मौत से डर लगता है ऐ खुदा
तू मेरे ज़िंदगी को किसी के नाम कर दे !
साथ रहेगा वो तो डर नहीं रहेगा खोने का
मेरी हर खुशी और ग़म उसके नाम कर दे !
लफ्जों में क्यों हिचकिचाहट है मेरे
नैन में क्यों भर आए आँसू !
बेचैन जिन्हें सोचकर हो रहा हूँ
क्या उनका भी खो गया चैन और सुकून !
क्यूँ दूरियाँ में कोई मुझसे अच्छा महसूस करता है
क्यूँ अपनापन या प्यार मुझसे अलग रखता है !
ज़िंदगी में अच्छाई अगर गुनाह है
तो ऐ खुदा ऐसी ज़िंदगी से बहुत डर लगता है !
ज़िंदगी अकेले जीना चाहता हूँ
अपनों और प्यार से दूर रहना है अब मुझे !
सजा तू जो देगा वो मंजूर होगा
इस ख्वाब के सफर में आखिरी रास्ते हैं मेरे !