शनिवार, 12 अगस्त 2017

भींगा-भींगा मौसम

चंद महीनों का ये मौसम
खिल खिला देता है उपवन |
पवन जब चलती है जोश में
तो संग इसके लग जाता है मन |

तितलियाँ, जुगनू को देख
जैसे खुश हो जाते हैं हम |
अगर ये आ जाये हाथ में
तो जाने नहीं देते हैं हम |

बारिशों के इस मौसम में
जब भींग जाते हैं हमारे तन |
चंचल मन को शांत करने
निकल पड़ते हैं हम भी उपवन |

बाग गुलजार हो जाते हैं
फूलों में छा जाते हैं गुलशन |
साये भी दिखने लग जाते हैं
जो रहते हैं नजरबंद |

तन भी भींगा, मन भी भींगा,
फिर भी चमक रहा है दर्पण |
जब दस्तक दे दिया है खुशी ने
तो क्यों दुखी हो रहा है मन |

अगले कुछ महीनों हमारा है
जीत लो सारे दिलों को |
संग चल रहे हैं सारे जहाँ
क्या पता, कल हो न हो |

शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

छुपी हुई प्रतिभा

एक अजब-सी अदब है
एक अजब-सा करिश्मा है |
एक अजब-सी चाहत है
जिसे पाने का जज्बा है |

मुझे भी कुछ करना है
मुझे भी कुछ बनना है |
कुछ बन के दिखाना है
ऐसी मेरी दिली तमन्ना है |

यूं घूट-घूट कर जीना
मुझे आता नहीं |
जो शौक दिल में है
वो छूट सकता नहीं |

मेरा मन भी था जिद्दी
भागने लगा उस ओर ही
सबसे छिपकर, दोस्तों से मिलकर
जब कदम मंजिल की ओर जाने लगी |

न दिखाया शक्ल, न की तकल्लुफ
बस चाहत की प्रदर्शन करने लगी |
तकदीर को खुदा माना
और पाया शोहरत कम समय में ही |

बुधवार, 2 अगस्त 2017

मन की दुहाई

मैं ठहरा हुआ पानी
वो चंचल हवा है |
किस गली जाने
वो चांद खिला है |

सदाये जो तेरी
चलती थी यहां पे
मिलता था दिल को करार
पर न जाने किससे
अब इकरार हुआ है |

वो लौटी तो ऐसे
इठलाते, बलखाते
मुस्काराते हुए मुझसे
कह दिया,
किसी से प्यार हुआ है |

मैने भी सोचा
वो चंचल है, बहता मन है
लेकिन वो कौन है
जिसे इस पर ऐतबार हुआ है |