मंगलवार, 23 नवंबर 2021

रेल का सफर



रेल और रेल की पटरियों से सबका नाता पुराना है।

लोग बदल गए, उनके विचार बदल गए,

पर रेल अब भी उनके दिलों का दिवाना है।


सफर के दौरान जब खिड़कियों से लोग ताकते हैं

कुलहरों में चाय पीते हुए जब खुद को निहारते हैं।

मुसाफिर बने एक जगह से दूसरे जगह जाते हैं

खुद का मंजिल ढूंढने रेल को ही साथी बना लेते हैं।


पटरियों की जब धकधक की आवाज सुनाई देती है

सीटियों की आवाज जब लोगों को बुलाती हैं।

हम भी रेल को यह कह देते हैं-

सुनो! हमें हमारे घर तक छोड़ दो

अब दूरियां हमसे सही नहीं जाती है।


यात्रा में यात्री बनकर जब सामने वाले से पूछते हैं

आप जरा थोड़ा जगह देंगे।

सुबह से शाम जब बैठकर गुजार देते हैं

और रात को खाना खाने साथ हो जाते हैं

आखिर यही कह देते हैं- अच्छा, अब सो जाते हैं

कल सुबह फिर बातचीत करेंगे।


रेलगाड़ी और रेलयात्री भी बनकर

न जाने कितने रातें गुजार देते हैं।

थककर जब अपने घर पहुंचते हैं

घरवाले भी खुशी से हमारा स्वागत करते हैं

हम भी उनकी खुशियां बटोरकर

फिर से रेल के साथ सफर पर निकल जाते हैं।