रविवार, 23 अक्तूबर 2022

सुकून भरे कुछ पल

नदियां किनारे हैं बयार चल रही
आंधियां कितनी जोरों से बह रही।
हम भी इसका आनंद ले रहे
इस पल को खुलकर जी रहे।
बदलते मौसम में जो उपवन खिल रहे
फूलों के बागियों में मुस्कान ला रहे।
थोड़ी देर रूककर जब हम थोड़ा आगे बढ़े
बदलते हुए नजारों के संग हम चल पड़े।
कुदरती दांव पेच को जब समझना चाहा
लोगों ने मुस्कुराकर इससे किनारा कर लिया।
कहा- "ठहर जा, जरा संभल कर चल
इतनी तेज गति से तो मत निकल।"
हमने ये सब बातें सुन तो ली
पर समझ नहीं आ रहा, ये सही है या नहीं।
कुछ देर बाद इस सोच में डूब गए
लगता है साधारण छवि देखकर सब हमें छोड़ गए।
गंतव्य स्थान पर जब हम पहुंचे
चेहरे के हाव-भाव देख सवाल हुए कुछ ऐसे।
इतनी देर कहां लगा दी, कहां चले गए थे तुम
मिजाज भी बदला हुआ-सा है, लग भी रहे हो कुछ गुमसुम।
हमने भी जवाब दिया ऐसा, वो भी नहीं हुए परेशान
बताया थोड़े थक गए हैं, इसलिए हैं ये उदासी भरे निशान।

रविवार, 4 सितंबर 2022

गुमशुम मन

बाहर ठंडी बयार चल रही थी।

साथ में बारिश की बौछारें भी शोर कर रही थी।

घरों में पानी की बूंदें भी ऐसे गिर रही थी

मानो जैसे ऊपर वाले द्वारा

इंसानों की इम्तिहान ली जा रही थी। 


पुरूष अपने कामकाज में व्यस्त थे

स्त्रियां ललाट पर केशों को

समेटते हुए रसोइ मेंं दिखाई दे रही थी।

हम ये सोचने मेंं लगे थे

क्यों नहीं हमारी सोच

अच्छे सोच विचार कर रही थी। 


यही सोचते सोचते जैसे ही

आसमान में हमारी नजर गई

काली बदरी भी गायब हो चुकी थी।

कुछ देर के बाद,

एकाध घरों से पर्दे भी हट गए थे

और कामकाजी लोगों की

आवाजाही भी सामान्य ढांचे में

नजर आने लग गई थी।

रविवार, 10 जुलाई 2022

हाल-ए-महफिल

 न पूछो हाल-ए-दिल, तो बेहतर होगा इस दिल के लिए।

सवाल जो तुम्हारे मन में हैं, वो सही नहीं है महफिल के लिए।


पुराने जख्म जो फिर हरे हो गए, तो दर्द दूर तक फैल जाएगा,

मरहम भी जो छूट गया, तो बुरा होगा इस दिल के लिए।
 

बेसब्री से जो इंतेज़ार में हैं, शान-ए-महफिल के आगाज में,

ग़र वो रुठ गए, तो मनाना मुश्किल होगा संगदिल के लिए।


चाहने वाले हैं ये मेरे, इन सबके करीब ही रहने दो,

ये अगर दूर हो गए, फिर नहीं मिलेंगे मेरे मंजिल के लिए।


सुना था पहले, सुनेंगे हमेशा, जो कितने वक्त से साथ में हैं,

न कभी छोड़ा था, न कभी छोड़ेंगे, जो बैठे हैं अंजाम-ए-महफिल के लिए।
 

वक्त को बेवक्त न होने दो, ये वक्त फिर वापस नहीं आएगा,

वक्त जो बेवक्त हो गया, तो अच्छा नहीं होगा हर प्यारे दिल के लिए।

शुक्रवार, 6 मई 2022

बीते दौर की बात

दोस्तों, वो भी क्या दौर था ।
मुस्कुराते हुए चेहरे पर खुशियों का जोर था ।
जो मिलते थे सब एक जगह,
तो लगता था ऐसा,
चेहरे पर खुशनुमा भावनाओं का शोर था ।
उस दौर की भी अजब कहानी थी ।
जाते हुए नैनों पर आंसूओं की निशानी थी ।
कह जाते थे मिलेंगे जल्द ही,
बस अपना ख्याल रखना,
हर लबों पर सिर्फ इंतजार ही जबानी थी ।
क्या जानना चाहोगे उस दौर के बारे में ।
किस्से जो छिपे थे चाँद, सितारों और तारे में ।
क्या बच्चे, बड़े और बुजुर्ग,
हो जाते कभी दुखी, तो होते थे कभी खुश,
भावनाएं जो छिपाए नहीं छिपती थी,
किसी भी किनारे में ।
याद आएंगे जब भी बीते हुए दौर,
तो सिर्फ रोना ही आएगा ।
इस भागते हुए दौर में,
कोई ना साथ दे पाएगा ।
जो बीत गया, वो बीत गया,
उसे समय को भूल जाओ,
आने वाला वक़्त ही, आगे लेकर जाएगा ।

सोमवार, 10 जनवरी 2022

मन का प्रेम भाव

नया नवेला जोड़ा जो हौले हौले शरमा रहा।
जैसे नीले गगन में चंद्रमा काले मेघा में छिप रहा।।
मनमोहक मुखड़े को देख जो मंद मंद मुस्कुरा रहा।
वो अपना हाल कुछ इस तरह बता रहा।।

प्रेम है वो बचपन का जिससे विवाह रचा लिया।
मंत्रमुग्ध था जिसके विचारों में, उसे जीवनसाथी बना लिया।।
मृगनयनी वो, प्रिय रूप वाली, प्रियसी उसे ही बना लिया।
चार दिवस हुए विवाह को, पर घबराहट अब तक नहीं जा रहा।।

ऐ प्राणनाथ, ऐ प्रियवर मेरे, उधर कहाँ तुम घूम रहे।
तुमसे करनी है कुछ बातें मुझे, तुम्हें कब से ढूंढ रहे।।
चलो नजदीक आ जाओ तुम मेरे, समय को बहुत नष्ट कर लिया।
जब से बंधे हैं वैवाहिक बंधन में, मौन रहकर काम चल रहा।।

सुनो प्रिय! एक वचन दो मुझे, किसी से ये बात नहीं कहोगी।
डर लग रहा है, थोड़ा परेशान हूँ, यदि तुम सुनना चाहोगी।।
पहले जरा-सा मुस्कुरा दो, बहुत हिम्मत से मैं कह रहा।
करता हूँ बहुत प्रेम तुमसे, पहली बार हृदय से तुम्हें बता रहा।।

प्रेम संबंध बचपन से बहुत मजबूत रहे, अब ये वैवाहिक रिश्ते से जुड़ गए।
था कठिन पर थोड़ी हिम्मत की, और हम एक दूसरे के हो गए।।
बहुत समय नष्ट कर लिया, अब अपने हृदय के भाव को कह रहा।
जितना तुम करती हो प्रेम मुझसे, मैं भी उतना ही तुमसे हमेशा से कर रहा।।