मंगलवार, 23 नवंबर 2021

रेल का सफर



रेल और रेल की पटरियों से सबका नाता पुराना है।

लोग बदल गए, उनके विचार बदल गए,

पर रेल अब भी उनके दिलों का दिवाना है।


सफर के दौरान जब खिड़कियों से लोग ताकते हैं

कुलहरों में चाय पीते हुए जब खुद को निहारते हैं।

मुसाफिर बने एक जगह से दूसरे जगह जाते हैं

खुद का मंजिल ढूंढने रेल को ही साथी बना लेते हैं।


पटरियों की जब धकधक की आवाज सुनाई देती है

सीटियों की आवाज जब लोगों को बुलाती हैं।

हम भी रेल को यह कह देते हैं-

सुनो! हमें हमारे घर तक छोड़ दो

अब दूरियां हमसे सही नहीं जाती है।


यात्रा में यात्री बनकर जब सामने वाले से पूछते हैं

आप जरा थोड़ा जगह देंगे।

सुबह से शाम जब बैठकर गुजार देते हैं

और रात को खाना खाने साथ हो जाते हैं

आखिर यही कह देते हैं- अच्छा, अब सो जाते हैं

कल सुबह फिर बातचीत करेंगे।


रेलगाड़ी और रेलयात्री भी बनकर

न जाने कितने रातें गुजार देते हैं।

थककर जब अपने घर पहुंचते हैं

घरवाले भी खुशी से हमारा स्वागत करते हैं

हम भी उनकी खुशियां बटोरकर

फिर से रेल के साथ सफर पर निकल जाते हैं।

रविवार, 23 मई 2021

महामारी से परेशान इंसान

 इंसान की गलती ने इंसान को ही सबक सिखाया।

महामारी के बुने हुए जाल में हर एक को उलझाया।

घर में कैद हुआ जब घर से दूर रह रहा इंसान

कामकाज में व्यस्त रहने वाला जब परिवार के वक्त में समाया।

 

इस अदृश्य काल ने ना जाने कितने लोगों को मृत्यु के घाट पहुंचाया।

बीमारी से बांधकर सबसे पहले सभी लोगों से दूर करवाया।

कुदरत ने भी आखिर सबको ये एहसास दिलवाया

ऐसे तड़प क्यों रहे हो, आखिर तुमने ही तो ये धुंध है फैलाया।

 

पहली लहर में शहर में ही था, जब बुजुर्गों के हाल को बेहाल किया।

दूसरी लहर में गांवों में पांव फैलाया, अब युवाओं को इस बीमारी से तड़पाया।

कहर ढाया जब हर के ऊपर तब ये बात समझने लगा हर कोई

क्या गलती हुई थी हमसे, जो दूरियों में ही रिश्ते को रिश्ता बताया।

 

आने वाले वक्त को इस काल के जाल ने ये बतलाया।

कुछ वक्त के लिए ठहर जाओ, बुरे वक्त ने हर इंसान को है फंसाया।

तुम अब दुखी हो गए हो, खुशियों के पल ने तुम्हें पहले था चेताया

पर तुम अपनी नादानियों में भूल गए थे, इसलिए विधाता ने आईने में चरित्र दिखलाया।

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

उम्मीदों की सूरज


बेफिजूल की बातों में मुझे मत लाना।

नाजुक है दिल, इसे कैसे समझाना।

कैसे कहूँ, किससे कहूँ, क्या है मेरी दास्तां

नहीं चाहती औरों को अनसुनी बातों में उलझाना।

 

अपनों ने साथ जब हमारा छोड़ा।

हम हुए अकेले और मुसीबतों ने घेरा।

क्यों ऐसा लग रहा था जैसे अंधेरा साथ हो गया है,

छोटी सी थी मैं और नासमझी ने डाला हुआ था डेरा।

 

मेरे जन्मदाता के बीच कुछ यूं उलझी पहेली।

रौनक भरे जीवन में अशांति की लगी बोली।

पढ़ने की उम्र में, बढ़ने की उम्र में

बर्बादी की मायाजाल में फंसी उम्मीदों की झोली।

 

मैं भी डटी रही, हौसले के साथ मजबूत रही।

दिल की बजाए दिमाग की सुन रही।

आगे बढ़ना है, आत्मनिर्भर बनना है,

पर क्या करुं, कैसे करूं, समझ नहीं पा रही।

शुक्रवार, 19 मार्च 2021

बेचारा मन

हर वक्त किसी को खोने का डर क्यों मन में रहता है।

ये बात और है जो दिल कुछ नहीं समझता है।

बस कुछ ऐसी भावनाएं मन में दौड़ती रहती हैं,

जिन्हें जानता नहीं, पहचानता नहीं,

उनसे ही जुड़े रहने का मन क्यों करता रहता है।

 

क्यों भाग रहा है वक्त, ठहर तो जा जरा-सा,

हम आहिस्ता-आहिस्ता खुद को संभाल लेंगे।

कुछ अपने, कुछ पराए को ये बात बता देंगे

नहीं मालूम रब ने किसको मेरे लिए चुना है

शायद इसलिए दिल परीक्षा देते रहता है।

 

बेबस, बेअदब, बेवफाओं के शहर में मन घूम रहा है

न जाने बेचारा दिल किसे ढूंढ रहा है।

रिश्ता जो कभी होगा नहीं, रिश्ता जो कभी बनेगा नहीं

वो रिश्ता जो मैं और तुम से हम कहलाएगा नहीं

उनके ही सोच में मन क्यों डूबा रहता है।

शुक्रवार, 5 मार्च 2021

नाखुश जिंदगी

 

वो आज खुश हैं

खुद को ऊपर देखकर।

वो आज आजाद हैं

अपने पैरों पर खड़ा होकर।

पर अचानक हमें क्यों ईर्ष्या होने लगी

अपनी मंजिल को दूर देखकर।

हालात ऐसे हो रहे हैं

जैसे जमीन खिसक गई हमारे नीचे से होकर।

 

बेबस, बदहाल सी हो गई है जिंदगी

शुरू होने से पहले ही ठहर सी गई है जिंदगी।

वक्त कुछ इस तरह दौड़ रहा है

पीछे रह गए साथी को छोड़ रहा है।

हम कोशिश कर रहे हैं, ये दुआ भी कर रहे हैं

कोई ऐसा रास्ता तो मिले जो हम ढूंढ रहे हैं।

वक्त ऐसी परीक्षा लेगा, ये कभी सोचे न थे

ऐसे पत्थर मिलेंगे, हम जानते न थे।

 

अपने हुनर को क्या बयान करें

ओरों के सामने क्या आजमाइश करें।

खुद को देखते हैं जब आइने के सामने

बिगड़े हुए हालात से क्या फरमाइश करें।

बढ़ाए थे जब हमने अपने पहले कदम

खुशी ऐसी हुई जैसे मिल गया हो कोई हमदम।

सफर में मिलने लगे थे कुछ नए साथी

कुछ ऐसे भी मिले, जैसे बन गए हो वो हमराही।

मंगलवार, 26 जनवरी 2021

अनकहे लफ्ज़

कभी बगान में आओ तो तुमसे कहूं।

कभी करीब आओ तो तुमसे कहूं।

ख्वाबों में रहने की अब जिद्द छोड़ दो,

कभी सामने आओ तो तुमसे कहूं।

 

कभी फूलों की तरह महको तो तुमसे कहूं।

कभी रंगो की तरह खिलो तो तुमसे कहूं।

गुमनाम जिंदगी जीने की अब जिद्द छोड़ दो,

कभी गहनों की तरह चमको तो तुमसे कहूं।

 

कभी फुर्सत में मिलो तो तुमसे कहूं।

कभी चाहतें करो तो तुमसे कहूं।

दूर-दूर रहने की अब जिद्द छोड़ दो,

कभी आहतें करो तो तुमसे कहूं।

 

कभी प्रेम दिखाओ तो तुमसे कहूं।

कभी गले मिलो तो तुमसे कहूं।

यूं ठहर जाने की अब जिद्द छोड़ दो,

कभी खुलकर मुस्कुराओ तो तुमसे कहूं।