शुक्रवार, 5 मार्च 2021

नाखुश जिंदगी

 

वो आज खुश हैं

खुद को ऊपर देखकर।

वो आज आजाद हैं

अपने पैरों पर खड़ा होकर।

पर अचानक हमें क्यों ईर्ष्या होने लगी

अपनी मंजिल को दूर देखकर।

हालात ऐसे हो रहे हैं

जैसे जमीन खिसक गई हमारे नीचे से होकर।

 

बेबस, बदहाल सी हो गई है जिंदगी

शुरू होने से पहले ही ठहर सी गई है जिंदगी।

वक्त कुछ इस तरह दौड़ रहा है

पीछे रह गए साथी को छोड़ रहा है।

हम कोशिश कर रहे हैं, ये दुआ भी कर रहे हैं

कोई ऐसा रास्ता तो मिले जो हम ढूंढ रहे हैं।

वक्त ऐसी परीक्षा लेगा, ये कभी सोचे न थे

ऐसे पत्थर मिलेंगे, हम जानते न थे।

 

अपने हुनर को क्या बयान करें

ओरों के सामने क्या आजमाइश करें।

खुद को देखते हैं जब आइने के सामने

बिगड़े हुए हालात से क्या फरमाइश करें।

बढ़ाए थे जब हमने अपने पहले कदम

खुशी ऐसी हुई जैसे मिल गया हो कोई हमदम।

सफर में मिलने लगे थे कुछ नए साथी

कुछ ऐसे भी मिले, जैसे बन गए हो वो हमराही।

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