बुधवार, 17 दिसंबर 2014

मेरी शक्ति को पहचानो

मैं हूँ आज की नारी
कमजोर मत समझना मुझे भूल से भी !
जानती हूँ जवाब देना
कर देती हूँ ऐसा हाल
भूल जाते हो तुम मेरी शक्ति को !
अगर उठ गया हथियार
तो सामने वाले मान लेंगे हार !
कह देते हैं मुझे बक्स दो
अब न करूंगा ऐसी गलती
पहचान न पाया था मैं तुझे
लेकिन अब पहचान गया तेरी शक्ति को !
ये रण छोड़ मैं जाता हूँ
दिल को ये समझाता हूँ !
तुझसे जीत नहीं सकता मैं
आगे बढ़ नहीं सकता मैं !
गलती हुई हो अगर मुझसे कुछ भी
माफ मुझे तुम कर देना
कमजोर समझने की गलती
नहीं करूंगा अब कभी !

शनिवार, 6 दिसंबर 2014

अनजाने रास्ते की ऒर

हम अजनबी हैं दोस्तों उस भीड़ में !
जहाँ दिखती है एक हस्ती,
लाखों की भीड़ में !
पहचाने जाते हैं वो लोग,
जो मिलते हैं तन्हां ज़िन्दगी में !
हम तो पीछे रह गए दोस्तों,
उनसे मिलने की ज़िद में !

न जाने वो कौन-सा साया है,
जिसे ढूंढ रहे थे हम अब तक !
दिल करता है ढूँढू उस शख्स को,
जो रहे मेरे दिल से लेकर ज़ुबां तक !
राह में दिखते सितारे हज़ार हैं !
फूलों की बगियन की तरह, नज़ारे हज़ार हैं !
मंज़िल बस एक ही पाना है,
लेकिन सोच में हूँ, कैसे पहुंचूं वहां तक !

दिल बेखबर है, सोचता यही है !
कैसे कहूँ उससे, जो दिल में बसी है !
एक साया जो मंडरा रहा है, भंवरों की तरह
न जाने किस ताक में है, जानता वही है !
है इरादा नेक उसका, जिसे वो ढूंढ रहा है !
है हमसफ़र वही उसका, जो अब तक न मिला है !
अनचाही दोस्ती का ये पहला कदम है,
कैसे आगे बढूँ, क्या ये शुरूआत सही है !

शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

क्यों हम ऐसे थे ?

हम अर्से तक साथ जिए
साथ बितायी अपनी ज़िन्दगी !
साथ में रहकर लड़ी लड़ाई
कुछ साथियों को जो नहीं भाई !
पहली बार जब उतरे मैदान पर
क्यों अजीब-सा लगने लगा ?
कुछ साथी जो साथ थे अब तक
अब अकेला ही लड़ाई लड़ रहा !
ज़िन्दगी कुछ इस तरह जिया हमने
दूर रहकर भी जो साथ रहे अपने !
ज़िन्दगी धुप-छाऊँ की तरह बीत गयी हमारी
भावुक कभी नहीं किया उन्होंने !
हो सके तो हमें माफ़ कर देना
लेकिन मजबूर हूँ अपने इरादे से !
तेरे साथ जीना चाहता था पूरी ज़िन्दगी
पर जुदा होकर भी साथ हूँ तेरे !

रविवार, 12 अक्तूबर 2014

शहर --- एक परिचय

जब मैंने चलना सीखा !
जब मैंने लड़ना सीखा !!
जब मैंने खुद को संभाला !
जब मैंने खुद को जाना !!
जब लोग कहा ये करते थे !
अब तक तुम क्यों ऐसे थे ?
मैं बस सुनता रहता था !
दिन-रात ये सोचा करता था !!
जब मैं पहले आया था !
हर वक़्त खुश रहा करता था !!
लोग मुझसे मिलते थे !
मुझमे दिलचस्पी रखते थे !!
मुसाफिर का रहता था ताना-बाना
राहगीर भी ये कहा करते थे !
तू है नया, तू है अलग
तुझमे है एक अलग झलक !
खुद आते, दोस्तों को भी लाते
उसको ये बताते-----
मैंने एक ऐसा शहर देखा
नए रिश्तों का चहल-पहल देखा !!
बच्चे, बूढ़े और नौजवान
जो बनाना चाहते हैं अपना पहचान !
भरना चाहते हैं एक नई उड़ान !
पर जब समय बदला
लोग बदले, बदल गया हमारा रिश्ता !
अब सब हो गए हैं खुद में मग्न
नहीं पहचानते हैं वो हमें
हम भी नहीं जानते उन्हें अब !
वो करना चाहते हैं मुझे सबसे अलग
बदल देना चाहते हैं मेरी पहचान !
मेरी खो चुकी है मुस्कान !
कहते हैं लोग अब सबसे
तेरे सिवा कोई और नहीं
तेरा मैं होना चाहता हूँ !
पर मैं हूँ ऐसी
कुछ कह नहीं सकती !
सुनने के सिवा कुछ कर नहीं सकती !
समयानुसार मुझे बदल दिया !
अब मुझे क्यों खोज रहे हो ?
मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है
जो मुझे कोष रहे हो !
 

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

शहरों की मंज़िल

कैसा है ये सहर
क्यों कोई जाने न ?
कैसा है ये डर
क्यों कोई बतलाये न ?
हर पल हर दम
मैं ये सोचता हूँ !
बारिश की बूंदों को
जब मैं देखता हूँ !
मुझको ऐसा जाने क्यों लगता है !
मन में हमेशा डर क्यों रहता है !
खिलखिलाती धूप की रौशनी
तो दिखती है
पर दिल की रौशनी
अभी भी चारो तरफ
नहीं फैली है !
हादसा तो अभी तक
ख़त्म हुआ नहीं !
दिन-रात तो मुश्किलें तो मिलती हैं
लेकिन मुश्किलों से मैं डरा नहीं !
मंज़िलें आसां हैं
डर एक नया है
पूछूँ मैं कैसे
क्या दिल कह रहा है ?
लोगों से सुनता हूँ
मैं दिल से बड़ा हूँ
क्यों मुझे ऐसा लगता है
मैं पीछे खड़ा हूँ !

शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

जाग जाओ मित्र

यूँ देर तक मैं सोया हुआ था
तभी किसी ने आकर मुझसे कहा ---
उठ जाओ ! नया सवेरा देखो,
नयी मंज़िल देखो
तुम्हारा इंतज़ार ख़त्म हुआ !
मैंने जब उठ कर देखा तो
कई सारी नयी राह दिख रही थी !
मुझे लगा अब जाग जाना चाहिए
अब आगे बढ़ना चाहिए !
मैं कोशिश करके जब आगे बढ़ा
तो देखा कई मित्र
बहुत आगे बढ़ चुके हैं !
मैंने सोचा अब अकेले ही
आगे बढ़ना चाहिए
और उनके साथ जाना चाहिए !

बुधवार, 20 अगस्त 2014

अधूरी ख़्वाहिश

लबों को लबों से आज़ छू जाने दो !
दिल धड़कता है तो धड़क जाने दो !
यूँ मत तड़पाओ तुम मुझे आज
ज़ी भर के बाहों में खो जाने दो !

तुझसे दूर होने का डर रहता है इस दिल को
अपनी मोहब्बत का इज़हार हो जाने दो !
चाहता हूँ तुम्हें हद से भी ज्यादा
आज अपनी तमन्ना पूरी हो जाने दो !

वादा किया था रब से, चाहूंगा तुम्हें शाम-सवेरे
तेरी हर ख़्वाहिश पूरी करूँगा दिल से !
मेरे हर वादे को दिल से गुज़र जाने दो
ख्वाबों से निकला हूँ, हकीकत में आ जाने दो !

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

मुझे मत मारो

हज़ारो दावतें हमने अब तक दी हैं !
सबकी चाहतें हमने पूरी की की हैं !
यूँ रूठ कर जाने वाले, तुझे क्या हुआ
तेरी कौन-सी ख्वाहिशें, अधूरी छोड़ी हैं !

बिखर चुके हैं हम टुकड़ों में हर जगह !
किसी को है तकरार, कोई चाहता है इस तरह !
किसी के मन में है मेरे लिए मोहब्बत
कोई नहीं चाहता जीते रहे हम इस तरह !

इस कदर मुझे मत मारो !
हो सके तो खुद को संभालो !
अगर मैं ना तो तुम भी नहीं रहोगे
सोचो, मैं चला गया तो तुम क्या करोगे ?

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

वर्षा ऋतु

आता हूँ मस्त पवन के साथ
कर देता हूँ सबको मैं खबर !
आ रहा हूँ खुशियां बांटने
जो है मुझसे बेखबर !

द्विमास तक मैं रहता हूँ !
हर जगह बरसता हूँ !
किसी को  होती है ख़ुशी
कोई होता है दुख ये सोचकर !

मैं भी हूँ मस्तमौला
सभी मुझसे कहते हैं
कब लौटूंगा मैं
यहाँ-वहां बरसकर !

कुछ रहते हैं मुझमें मग्न !
कुछ रहते हैं खुद में मस्त !
कुछ कहते हैं
क्यों रहते हो तुम कुछ पल के लिए !
कुछ कहते हैं
यादें छोड़ देते हो हर पल के लिए !

किसी को होता है मुझसे प्यार !
किसी को होता है मुझपे ऐतबार !
किसी को है मुझसे तकरार !
किसी का दिल है बेक़रार !

मेरा तो है बस ये कहना------
"पानी हूँ कहीं बरस जाऊँगा !
किसी के दिल में बस जाऊँगा !
कोई है बेक़रार
ये जानने को
अगर अभी चला गया
तो फिर मिलने को कब आऊंगा !"

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

एक टूटा परिंदा

हम खुद के मालिक
हुए जा रहे थे !
नया करूँ तो कैसे करूँ
इस दूविधा में जीये जा रहे थे !

हर वक़्त ये सोचते थे
खुद अपने में मग्न थे !
जिन लोगों ने कुछ पूछा था
वो किस राह में गुम थे !

इस ज़िंदगी का क्या फायदा
जिससे कुछ हासिल ना हो !
इस महफिल में कुछ ऐसे भी हैं
जिनकी कोई मंज़िल ना हो !

दिल करता है आगे बढ़ूँ
पर रूक जाता हूँ ये सोचकर !
डर लगता है कुछ इस तरह
कैसे कहूँ, क्यूँ है दिल बेखबर !

हवाओं की तरह खो गए इरादे मेरे
नहीं कर सकता अब वादे नए !
दिल में कई सारे हैं अरमान मेरे
लेकिन बताऊँ तो बताऊँ किसे ?

सोमवार, 11 अगस्त 2014

कविता

मुझे हर कोई हैं जानते !
मुझे हर शख्स हैं अपनाते !
दिल करता है उनसे बंधी रहूँ,
लेकिन सभी पास आकर, दूर हो जाते !
मुझे सभी लफ़्ज़ों से पिरोते !
उन्हें खूबसूरती से सजाते !
मुझे लम्बी बाहों में बांधकर,
एक नाम हैं देते !
हर उत्सव में मुझे पेश करते !
हर जगह मेरी पहचान कराते !
नए रंगो से बांधकर,
नयी जगह मुझे देते !
ख़ुशी से झूम उठती  मैं,
जब नए तरीके से थे आजमाते !
हर शाम नयी होती थी,
जब सभी के बीच में मुझे सुनाते !
पर वक़्त बदला, "विवेक" बदला,
बदल गयी मेरी पहचान !
बदल गयी मेरी वेश-भूषा,
लोगों ने भुला दिया,
अब बन रह गयी मैं केवल मेहमान !

सोमवार, 23 जून 2014

तुम मिले !

तुझसे मैं अंजान था !
तुझसे जब मेरा ना पहचान था !!
जब जाना मैंने तुझे !
जीने लगा था मैं कुछ ऐसे !!
बातें करने का सिलसिला जब शुरू हुआ !
तेरे संदेशों  से मुझे प्यार हुआ !!
यूँ अक्सर सोचा करता था !
तुझसे मिलने को दिल करता था !!
जब आवाज़ दी थी तुमने मुझे !
मैं डरा-सहमा, ना गया पास तेरे !!
चली गयी हो तुम अब किसी के में !
कैसे आऊँ अब तेरे प्यारे महफ़िल में !!
कुछ वक़्त पहले जो मिला था प्यार !
उसे कैसे ढूँढू अब मेरे यार !
मैं अब उससे यही कहूँगा ---
"रातें गुमनाम होती हैं,
दिन भी किसी के नाम होता है !
हम ज़िन्दगी में कुछ ऐसे जीते हैं,
की हर लम्हा दोस्तों के नाम होता है !"

मंगलवार, 10 जून 2014

आपसे मिलकर !

कुछ कदम ऐसे मिले
जो अर्सों से दूर थे !
कुछ बात ऐसी बनी
जो अर्सों से गुमशुदा थी !

पुराने दोस्त लौट आये !
पुरानी यादें लौट आई !
ढूँढ रहे थे जिसे हम
वो अब हैं मिल पाए !

खुश हुए हैं आपसे मिलकर
खुश हो जाइये आप भी !
मत सोचिये अब मुझे
और कुछ कीजिये भी !

शुक्रवार, 6 जून 2014

तुम मेरे हो !

छुप गया चेहरा परछाइयों में कहीं !
ख्वाबो में गुम हो गया इरादा कहीं !
जिसे जानता था, जिसे चाहता था,
वो रूठ कर चले गए हमसे कहीं !

उसे समझाऊं भी तो कैसे ?
उसे बताऊँ भी तो कैसे ?
वो रूठी हुई है इस कदर मुझसे,
खुद को संभालूं भी तो कैसे ?

उससे नज़र मिलाने को काफ़ी वक़्त हो गए !
उसके राह में नए अजनबी दिख रहे !
वो याद में मेरी है, पर साथ में नहीं,
उससे कुछ कहने को ज़माने हो गए !

सोमवार, 2 जून 2014

वो... कौन थी ??

जाने ऐसा क्यों लगने लगा,
जब तू मेरे करीब आने लगा !
दिल ढूंढ़ता है उस पल को,
जब मैं तुझसे मिला !

ख़ुशी हुई थी इस कदर,
जब अर्से बाद हुई थी तुझसे मुलाक़ात !
सोचता था तेरे बारे में,
किया  करता था तेरी ही बात !

सोचता हूँ उस पल को !
कोसता हूँ उस पल को !
अगर दोस्त ना होते तुम मेरे,
तो नहीं याद करता उस पल को !

चले गए हो दूर अब तुम मुझसे,
सोचना नहीं चाहता अब तेरे बारे में !
तलाश है अब नए अजनबी की,
जो आ जाये मेरे ज़िन्दगी में !

बुधवार, 29 जनवरी 2014

यादों का सफ़र !

वो मेरे सामने थे सवेरे कि तरह !
उन्हें ढूंढ रहा था मैं अँधेरे कि तरह !
उनकी दिख रही थी केवल परछाईं,
अब पूछूं भी मैं किससे,
जो मिल गए हैं मुझे इस तरह !

यादों के सफ़र में ना याद साथ है !
दूर इस सफ़र में ना कोई साथ है !
चल पड़ा हूँ अकेला अंजान इस सफ़र में,
बनकर मुसाफिर हर राही कि तरह !

आ चुका था दूर !
नहीं होना चाहता था अब
किसी के लिए मसहूर !
छोड़ दिया था सभी को,
एक अंजान साथी, दोस्त कि तरह !

कभी हुआ था किसी से प्यार !
कभी किया था किसी से इज़हार !
अब नहीं करना किसी पे ऐतबार,
भूल चूका था मैं सभी को,
एक बुरे सपने कि तरह !

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

आखिर क्यूँ ?

क्यूँ कोई किसी को छोड़ देता है ?
बिना बात के मुख मोड़ लेता है ?
नाज़ुक-सी चीज़ को कोई समझता नहीं,
दिल लगाके क्यूँ कोई दिल तोड़ देता है ?

नींदों में ख्वाब बनकर क्यूँ आ जाता है ?
दिलों में प्यार क्यूँ जगा जाता है ?
दोस्त बनकर प्यार कभी किया नहीं,
तो फिर प्यार करके क्यूँ कोई दोस्ती तोड़ देता है ?

रास्ते हज़ार नज़र आते हैं !
लेकिन मंज़िल क्यूँ नहीं दिखाई देता है ?
हाथ थामने को कई मिल जायेंगे,
लेकिन मदद क्यूँ नहीं कोई करता है ?

सोमवार, 27 जनवरी 2014

कहाँ वो चले गए ?

एक हसरत थी  दिल में !
उनसे मिलने कि  चाहत थी मन में !
वो एक प्यारे दोस्त बनकर
आये थे मेरे ज़िन्दगी में !
रूठ कर चले गए
वो मुझसे ऐसे !
अब बताऊँ भी तो उन्हें कैसे ?
उन्हें ढूंढ़ने चला था
यादों कि गलियों में !
पूछने चला था
फूलों कि कलियों से!
वो मिल जाएं
तो बता देना हमें !
दिल ढूंढ रहा है उन्हें
कुछ दिनों से !
याद आती है जब उनकी,
पानी आ जाता है
हमारी आँखों में !
दिल भर आता है
उनकी बातें सोचकर,
जब मैं उन्हें देखता हूँ
उनकी तस्वीरों में !
हर पल मैं गम सहता हूँ !
अब मैं बस यही कहता हूँ ---
" चाहत हो किसी को पाने कि,
मुस्कुरा लेना एक बार दिल से !
मिल जाये अगर वो कहीं,
तो अपना बना लेना
उन्हें हँसते-हँसते !"