बुधवार, 18 नवंबर 2020

मेरी कुछ बातें

मैं सोचता हूँ

हर दिन

कुछ करूँ नया।

सोचते-सोचते

कुछ न मिला

और वो दिन

बीत गया।


मेरा सवेरा होता था

कुछ खास

लम्हों के साथ।

बीतती थी मेरी रात

एक नए

सोच के साथ।


दीवार बन कर

खड़ी है 

उदासी मेरे दिल पर।

क्या करूँ, क्या न करूँ

बचकर रहता हूँ

इससे मैं घबराकर।


मैं अपनी

दिली-इच्छा से

बैठता हूँ

कोई नया काम करने।

लेकिन कुछ लोग

ऐसे मिल जाते हैं

जो लग जाते हैं

उसे रोकने।


मैं अपनी

उदासी भरी बात

आज कागज पर

व्यक्त कर रहा हूँ।

आप इसे

समझ सकते हैं तो समझें

नहीं तो मैं

कुछ खास नहीं कह रहा हूँ।


कोई भी काम

मैं ठीक से

नहीं कर पाता।

मेरे मन में

घबराहट गुंजती है

जिसे मैं

कह नहीं पाता।


मेरी कुछ बातें

दिलों में

किसी के नहीं जाती।

सब अपने में

रहते हैं मग्न

और मेरी बात

समझ में नहीं आती।