सोमवार, 23 मार्च 2020

नकाबपोश चेहरे

आजकल नक़ाबों से छिपे चेहरे दिख रहे हैं।
हर चेहरे के पीछे एक नए चेहरे मिल रहे हैं।
आहिस्ता-आहिस्ता साथ चलते हैं ऐसे,
जैसे साथ में चलते हुए भी अकेले से लग रहे हैं।

वीरान-सा शहर, सूने-सूने से रास्ते
खालीपन-सी जिंदगी अब महसूस हो रहे हैं।
बातों का सिलसिला भी कुछ यूं खत्म हो रहा,
जैसे गुफ्तगू करने से भी लोग कतरा रहे हैं।

क्या अपने, क्या पराए, क्या दोस्त, क्या दुश्मन
हर कोई, हर किसी से जुदा होने का ग़म मना रहे हैं।
नहीं चाहते किसी से भी दूर रहना,
पर मजबूरियां में ही फासला बढ़ा रहे हैं।