बुधवार, 12 जुलाई 2017

छांव की नरमी

तू है कर्ता-धर्ता
तेरे लिए जग रोता |
जाएगा जिस ओर तू
मैं भी उसी ओर चलता |

संभलना सीखा तुझसे
मैं चलना सीखा तुझसे |
अगर मैं गिर गया कहीं भी
तो उठना सीखा तुझसे |

मेरी है पगडंडी तू
मेरी हर कदम है ही तू |
ठोकरें बन जाऊँ न मैं
इसलिए बैसाखी है तू |

मेरी हिम्मत जब भी टूटी
मेरी सोच जब भी रूकी |
समझ लिया तूने मेरे मन को
क्योंकि तू ही है मेरी शक्ति |

लड़ रहा हूँ अब अपने खून के लिए मैं
मेरे अपने को खोज रहा हूँ अब मैं |
मेरी आत्मा तू ही है,
मेरी शब्द भी तू ही है
तेरे शांति के कारण ही रो रहा हूँ अब मैं |

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

बांवरा मन

आहत जब भी सुनता हूँ
तो ऐसा क्यों लगता है
जो है मेरे पास
पर दिल का हुआ नहीं मेरे |

जब दिल उदास था
मन में मेरे एक बात था
आँसू निकल रहे ये सोचकर
क्यों ये बह रहे मेरे ?

ये चेहरा उतरा हुआ है
जैसे कोई तूफान ठहरा हुआ है
आज बात में दम नहीं है
शब्द लगता है खो गये मेरे |

न जाने किस गली, किस शहर में
तू छुपा बैठा हुआ है
तू गया है जब से
अच्छाई छुप गये मेरे |

दबे पाँव आती थी जब तू मेरे पास
छोटी ही सही, हमारी मुलाकात
पर अब तरस गया तेरी एक झलक
जो नहीं कर पा रहा दिल मेरे |