बुधवार, 18 नवंबर 2020

मेरी कुछ बातें

मैं सोचता हूँ

हर दिन

कुछ करूँ नया।

सोचते-सोचते

कुछ न मिला

और वो दिन

बीत गया।


मेरा सवेरा होता था

कुछ खास

लम्हों के साथ।

बीतती थी मेरी रात

एक नए

सोच के साथ।


दीवार बन कर

खड़ी है 

उदासी मेरे दिल पर।

क्या करूँ, क्या न करूँ

बचकर रहता हूँ

इससे मैं घबराकर।


मैं अपनी

दिली-इच्छा से

बैठता हूँ

कोई नया काम करने।

लेकिन कुछ लोग

ऐसे मिल जाते हैं

जो लग जाते हैं

उसे रोकने।


मैं अपनी

उदासी भरी बात

आज कागज पर

व्यक्त कर रहा हूँ।

आप इसे

समझ सकते हैं तो समझें

नहीं तो मैं

कुछ खास नहीं कह रहा हूँ।


कोई भी काम

मैं ठीक से

नहीं कर पाता।

मेरे मन में

घबराहट गुंजती है

जिसे मैं

कह नहीं पाता।


मेरी कुछ बातें

दिलों में

किसी के नहीं जाती।

सब अपने में

रहते हैं मग्न

और मेरी बात

समझ में नहीं आती।

सोमवार, 7 सितंबर 2020

कहानी भारत की

वो वाल्मीकि, रहीम, तुलसी, कबीर

वो साईं साधु संत फकीर।

वो नेहरू, गांधी, बल्लभ, भीम

वो हर क्षण चौकसी करते वीर धीर।

वो गंगा, यमुना, सरयु की धारा

वो बागमती, गोमती की पुकार सुन जरा।


वो मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारा

वो सबका मालिक एक ही यारा।

वो अजान, पूजन, अरदास, प्रार्थना

हर जनमानस की एक ही याचना।

वो हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई

हर धर्मरक्षक की बस एक ही लड़ाई।


वो नेता, अभिनेता या हो श्रोता

हर किसी के चेहरे पर बसा है मुखौटा।

वो दिनकर, बच्चन या हो निराला

हर मौन सिपाही के हाथ में होता है शब्दों का मधुशाला।

वो फाल्के, मिल्खा या हो अटल

वो सिनेमा, खेल और राजनीति में रहे हैं प्रबल।


क्या उत्तर, क्या दक्षिण, क्या पूरब, क्या पश्चिम

हर भूभाग में है कई ऐतिहासिक पंछी।

वो वर्दी सिपाही की हो या हो फौजी की वर्दी

वो जान पर खेलने वाले होते हैं जांबाज खिलाड़ी।

यहां हर मोड़ पर बदलती है वाणी और पानी

यहां खाने, गाने से लेकर हर चीज में है कहानी।

गुरुवार, 3 सितंबर 2020

बेसब्र तकलीफें

 कब तक रहेंगे हम ऐसे बैठे हुए

कब तक सुनेंगे बात हम हर किसी के ।

कोई तो होगा जो पहचानेगा हमारा हुनर

कोई तो देखेगा हमारे अंदर का सिकंदर ।


दिन बीता, महीने बीते,

अब तो साल भी आने को है ।

परेशान हैं, बेसब्र हैं

पर सवाल अब भी वही ज़हन में है ।


 लेकिन मौसम कुछ ऐसा हो गया है

कि पूरी दुनिया का बस यही सवाल है ।

हर इंसान इस सोच में डूबा हुआ है

इस समस्या का क्या समाधान है ।


फिर भी कोशिश कर रहे हैं पूरी तरह से

पर रास्ता नहीं दिख रहा है कोई छोर से ।

कुछेक मददगारों के शर्तें हजार हैं

इसलिए प्रयास में जुटे हुए हैं हर ओर से ।

सोमवार, 23 मार्च 2020

नकाबपोश चेहरे

आजकल नक़ाबों से छिपे चेहरे दिख रहे हैं।
हर चेहरे के पीछे एक नए चेहरे मिल रहे हैं।
आहिस्ता-आहिस्ता साथ चलते हैं ऐसे,
जैसे साथ में चलते हुए भी अकेले से लग रहे हैं।

वीरान-सा शहर, सूने-सूने से रास्ते
खालीपन-सी जिंदगी अब महसूस हो रहे हैं।
बातों का सिलसिला भी कुछ यूं खत्म हो रहा,
जैसे गुफ्तगू करने से भी लोग कतरा रहे हैं।

क्या अपने, क्या पराए, क्या दोस्त, क्या दुश्मन
हर कोई, हर किसी से जुदा होने का ग़म मना रहे हैं।
नहीं चाहते किसी से भी दूर रहना,
पर मजबूरियां में ही फासला बढ़ा रहे हैं।