रविवार, 11 अगस्त 2019

नया सफर, नया है डर

आज हमारी दुआ दिल से कुबूल हुई
जो चाहा था खुदा से, वो खुशी मिली ।
अब मुझे जानने चार यार मिले
पूछते हैं हमेशा, कैसी चल रही जिंदगी ।

मैं सवार हुआ उस कश्ती में
जो मेरे लिए थी बिल्कुल नई ।
जो जान चुके थे, परख चुके थे
वो संभाल रहे थे किसी दूसरे छोर से ही ।

मैं ठहरा बेचारा, चल दिया जैसे आवारा
वो कहते रहे, मैं सोचता रहा
क्या डूब जाएगी कश्ती रास्ते में ही ?

पर हौसला बढ़ा, दिल में फैसला हुआ
मैं आगे चला, मन में सोचता चला
अब मुझे रुकना नहीं
चाहे रुकावटें मिले कैसी भी ।

शनिवार, 10 अगस्त 2019

ये कैसी है बेरुखी

उनके अल्फाजों में अचानक बेरूखी नजर आई
वो किस बात से खफा थे, ये समझ नहीं आई ।
कुछ वक्त गुजारे थे हमने उनके साथ
लेकिन ऐसा एहसास नहीं हुआ
उन्होंने कभी हमारे साथ यारी नहीं निभाई ।

कुछ ही वक्त हुए थे उन्हें पहचाने हुए
कभी हम उनको जान नहीं पाए ।
साथ बैठते थे, हर बात साझा करते थे
लेकिन पता नहीं क्यों
वो मन की बात को मन में दबाते चले गए ।

जब हमने पूछा, क्या हुआ है बताओ
वो बोले कुछ नहीं कहना, तकलीफ़ नहीं बढ़ाओ ।
हम अब साथ नहीं, आगे कोई बात नहीं
लबों को हद में रखो, हमें नाराजगी नहीं दिलाओ ।

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

नफ़रत की आजमाईश

बैठे कुछ चंद शरीफ़
मेरे पास आकर ।
मेरे लिए थे सब नए
मैं ये जानकर ।
चुपचाप अकेले में मग्न था
मैं ये सोचकर ।
कैसे लब खोलूं, कैसे कुछ बोलूं
तहज़ीब निभा रहा हूं कायदा मानकर ।
वक्त गुजरा, गुज़र गए दिन
साथ चलने लगे बिना सोचे कुछ भी ।
हंसी थी, खुशी भी थी
पराए क्यों होने लगे अपने जैसे ही ।
एक समय ऐसा आया जब
गुज़ारिश ऐसे होने लगी जैसे ख्वाहिश ।
लबों से जब निकले अलविदा के लफ्ज़
क्या शुरू हो चुकी थी नफ़रत की आजमाईश ।