शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

जन्नत जहां

मेरी जन्नत को बचा लो
तुम्हें गले लगा लूंगा |
ये मुश्किल है कहना तुझसे
फिर से सजा दूंगा |

तुझे बेबस, तुझे लाचार
जिस किसी ने भी बनाया |
न कुछ सोचा, न कुछ समझा
तेरी जमीं को जला डाला |

ये हमारा है, हमारा रहेगा
हमसे कोई छीन नहीं सकता |
इससे हर साँस, इससे हर आस
हमेशा से हमारा था |

ये खुला आसमान और हसीन वादियों
जिसमें गंदगी भर गयी|
कुछ शैतानों ने सुरंग के सहारे
कई हदें पार कर ली |

आलम ये दिखा दिया
हममें हिंसा जगा दिया |
हमने भी क्रूरता दिखा दी
और उनमें डर जगा दिया |

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

जश्न - ए - जुदाई

अनजाने में एक तोहफा
दे दिया था किसी ने |
छोड़ आया उस गली
जहां मिला था वो मुझे |

क्या भरोसा करना उस पर
जो किसी काबिल ना हो |
क्यों चलता रहूँ उसके पीछे
जो कभी हासिल ना हो |

क्या दोस्ती, क्या दुश्मनी
अब इसमें कोई दिलचस्पी नहीं |
क्या प्यार, क्या मोहब्बत
नहीं चाहिए ये सब कभी |

इंतजार करने की हिम्मत नहीं
किसी को चाहने की अब सोचता नहीं |
मिलते हैं कई लोग तन्हा जिन्दगी में
किसी से जुड़ने का अब शौक नहीं |

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

आखिरी हंसी

एक अदब सी चाह है
तुझे पाने की |
एक शौक है
तुझे दिल में रखने का |
पता नहीं
किस ओर मुड़ गया है
मेरे ख्वाबों का पन्ना |
दिल बस में नहीं
और चेहरा बन चुका है
किसी के यादों का आईना |
आंसू रुकते नहीं
यादें जाती नहीं
और भूल चुका हूँ मैं
आखिरी हंसी कब निकली थी |
तेरी बातें, तेरी हंसी,
तेरी खुशी में ही मेरी खुशी |
अलविदा कहने की आदत
तेरे चले जाने से बनी |