बुधवार, 29 जनवरी 2014

यादों का सफ़र !

वो मेरे सामने थे सवेरे कि तरह !
उन्हें ढूंढ रहा था मैं अँधेरे कि तरह !
उनकी दिख रही थी केवल परछाईं,
अब पूछूं भी मैं किससे,
जो मिल गए हैं मुझे इस तरह !

यादों के सफ़र में ना याद साथ है !
दूर इस सफ़र में ना कोई साथ है !
चल पड़ा हूँ अकेला अंजान इस सफ़र में,
बनकर मुसाफिर हर राही कि तरह !

आ चुका था दूर !
नहीं होना चाहता था अब
किसी के लिए मसहूर !
छोड़ दिया था सभी को,
एक अंजान साथी, दोस्त कि तरह !

कभी हुआ था किसी से प्यार !
कभी किया था किसी से इज़हार !
अब नहीं करना किसी पे ऐतबार,
भूल चूका था मैं सभी को,
एक बुरे सपने कि तरह !

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

आखिर क्यूँ ?

क्यूँ कोई किसी को छोड़ देता है ?
बिना बात के मुख मोड़ लेता है ?
नाज़ुक-सी चीज़ को कोई समझता नहीं,
दिल लगाके क्यूँ कोई दिल तोड़ देता है ?

नींदों में ख्वाब बनकर क्यूँ आ जाता है ?
दिलों में प्यार क्यूँ जगा जाता है ?
दोस्त बनकर प्यार कभी किया नहीं,
तो फिर प्यार करके क्यूँ कोई दोस्ती तोड़ देता है ?

रास्ते हज़ार नज़र आते हैं !
लेकिन मंज़िल क्यूँ नहीं दिखाई देता है ?
हाथ थामने को कई मिल जायेंगे,
लेकिन मदद क्यूँ नहीं कोई करता है ?

सोमवार, 27 जनवरी 2014

कहाँ वो चले गए ?

एक हसरत थी  दिल में !
उनसे मिलने कि  चाहत थी मन में !
वो एक प्यारे दोस्त बनकर
आये थे मेरे ज़िन्दगी में !
रूठ कर चले गए
वो मुझसे ऐसे !
अब बताऊँ भी तो उन्हें कैसे ?
उन्हें ढूंढ़ने चला था
यादों कि गलियों में !
पूछने चला था
फूलों कि कलियों से!
वो मिल जाएं
तो बता देना हमें !
दिल ढूंढ रहा है उन्हें
कुछ दिनों से !
याद आती है जब उनकी,
पानी आ जाता है
हमारी आँखों में !
दिल भर आता है
उनकी बातें सोचकर,
जब मैं उन्हें देखता हूँ
उनकी तस्वीरों में !
हर पल मैं गम सहता हूँ !
अब मैं बस यही कहता हूँ ---
" चाहत हो किसी को पाने कि,
मुस्कुरा लेना एक बार दिल से !
मिल जाये अगर वो कहीं,
तो अपना बना लेना
उन्हें हँसते-हँसते !"