शनिवार, 24 मार्च 2018

विद्रोह की आग

मैं बेखबर था, अपने शहर से
मैं शांत था, अपने कर्मों से |
पर जब कुछ असामान्य लोगों ने
हमारे शहर को खत्म कर दिया
तब मेरे अंदर का शत्रु जाग गया |
मेरे मित्रों ने, मेरे करीबी लोगों ने मुझे समझाया
लेकिन मेरा क्रोध फिर भी कम न हुआ
और मैं प्रतिषोध के लिए निकल गया |
मैंने ठान लिया और सोच लिया
इस घात का प्रतिघात लेकर ही लौटूंगा |
जिन्होंने हमें यह जख्म दि है
उनकी अब जान जाएगी |
जिन्होंने हमारी आवाज रोकी है
उनकी अब सांस रूकेगी |
जब मैं उनके इलाके पहुंचा
तो पहले खुद को तैयार किया
फिर उन्हें ढूंढना शुरू किया |
कुछ वक्त बीता, कुछ साल बीते
लेकिन उन लोगों को खत्म कर दिया
और तब मेरे अंदर के विद्रोह का आग कम हुआ |