गुरुवार, 29 नवंबर 2018

गुज़ारिश: एक छोटी-सी नींव की

इंसान की इंसानियत, कहाँ खत्म हो गई ।
जिसने इस दुनिया में तुम्हें लाया, उसी से कैसे गलती हो गई ।
अगर वो होता नासमझ, तो तुम इस जहां में न होते
तुम्हारी सोच और समझ, क्या तुझसे अलग हो गई ।

खुदा से सभी डरते हैं, लेकिन तुझमें डर ही नहीं बचा
ऐसे में कहीं के नहीं रहोगे, अगर किस्मत का साथ नहीं रहा ।
तुमने पत्थर दिल बनकर, भावनाओं को किधर छोड़ दी
क्या तेरे साथ देने वालों के, सीने में भी दिल नहीं रह गई ।

ख्वाब पूरे होने के इंतज़ार में, जज़्बातों से खेलते रहे
क्या कोई हमसे ख़ता हो गई, जिससे हम अंजान रहे ।
इतने मशगूल किस चीज में हो, कि पहचानने की शक्ति खत्म हो गई
किस इंसान को इस बात पर अफसोस है, कि उसे इस जहां में लाने वाले की गलती हो गई ।

गुज़ारिश है उन लोगों से, जिसने अपनों को पराया समझ लिया
परंतु मैं सहम जाता हूं उन बातों से भी, जिसने इंसान को इंसान न समझा ।
हमारे परवरिश या प्रेम में, क्या कमी रह गई
मासूम थे हम या मासूम थे वो, जिसके कारण सबसे दूर हो गई ।