शुक्रवार, 19 मार्च 2021

बेचारा मन

हर वक्त किसी को खोने का डर क्यों मन में रहता है।

ये बात और है जो दिल कुछ नहीं समझता है।

बस कुछ ऐसी भावनाएं मन में दौड़ती रहती हैं,

जिन्हें जानता नहीं, पहचानता नहीं,

उनसे ही जुड़े रहने का मन क्यों करता रहता है।

 

क्यों भाग रहा है वक्त, ठहर तो जा जरा-सा,

हम आहिस्ता-आहिस्ता खुद को संभाल लेंगे।

कुछ अपने, कुछ पराए को ये बात बता देंगे

नहीं मालूम रब ने किसको मेरे लिए चुना है

शायद इसलिए दिल परीक्षा देते रहता है।

 

बेबस, बेअदब, बेवफाओं के शहर में मन घूम रहा है

न जाने बेचारा दिल किसे ढूंढ रहा है।

रिश्ता जो कभी होगा नहीं, रिश्ता जो कभी बनेगा नहीं

वो रिश्ता जो मैं और तुम से हम कहलाएगा नहीं

उनके ही सोच में मन क्यों डूबा रहता है।

शुक्रवार, 5 मार्च 2021

नाखुश जिंदगी

 

वो आज खुश हैं

खुद को ऊपर देखकर।

वो आज आजाद हैं

अपने पैरों पर खड़ा होकर।

पर अचानक हमें क्यों ईर्ष्या होने लगी

अपनी मंजिल को दूर देखकर।

हालात ऐसे हो रहे हैं

जैसे जमीन खिसक गई हमारे नीचे से होकर।

 

बेबस, बदहाल सी हो गई है जिंदगी

शुरू होने से पहले ही ठहर सी गई है जिंदगी।

वक्त कुछ इस तरह दौड़ रहा है

पीछे रह गए साथी को छोड़ रहा है।

हम कोशिश कर रहे हैं, ये दुआ भी कर रहे हैं

कोई ऐसा रास्ता तो मिले जो हम ढूंढ रहे हैं।

वक्त ऐसी परीक्षा लेगा, ये कभी सोचे न थे

ऐसे पत्थर मिलेंगे, हम जानते न थे।

 

अपने हुनर को क्या बयान करें

ओरों के सामने क्या आजमाइश करें।

खुद को देखते हैं जब आइने के सामने

बिगड़े हुए हालात से क्या फरमाइश करें।

बढ़ाए थे जब हमने अपने पहले कदम

खुशी ऐसी हुई जैसे मिल गया हो कोई हमदम।

सफर में मिलने लगे थे कुछ नए साथी

कुछ ऐसे भी मिले, जैसे बन गए हो वो हमराही।