शुक्रवार, 29 मई 2015

काश ! आप हमारे होते

यूं तड़प-तड़प कर जी रहा था
उनको याद करके इस तरह
ना जाने वो कौन-सा पल था     
जिस पल वो मिली थी मुझे इस तरह
क्यों हम जी रहे हैं मर-मर के इस तरह
जो आप हमारे नहीं हैं ज़िंदगी में इस तरह
आपको सोच कर क्यों रो रहा हूँ
पता नहीं मैं क्या कर रहा हूँ
दिल से आपको करीब क्यों मान लिया
अंधेरे में किसे जान-पहचान लिया
वो कौन-सा साया था जो दूर हो गया
और मैं क्यों इतना मजबूर हो गया
अपनों में दिखी एक परछाईं थी
जो घबराई और शर्मायी थी
अब दूर जाना चाहता हूँ मैं आपसे
दूर उस जहान में
जहां मंज़िल तो हो मेरी
पर न तड़पूँ तेरी याद में !!

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