सोमवार, 1 जून 2015

बिखड़ी हुई राख़

तेरे साथ वक़्त बिताने को मैं सोच रहा था
पर तेरे इरादे को मैं समझ नहीं पाया !
तुमने मुझे ठुकराया इस तरह
की मैं खुद को भी रोक नहीं पाया !
अक्स निकलने लगे नैनों से कुछ इस तरह
की दिल को भी समझा नहीं पाया !
पता नहीं, क्यूँ इस तरह मैं करने लगा ?
तेरे लिए भावनाओं में क्यूँ बहने लगा ?
जानता हूँ तुम कभी मिलोगी नहीं
फिर दिल तेरा इंतज़ार क्यूँ करने लगा ?
अब कुछ इस तरह मैं बदलना चाहता हूँ !
मैं खुद को सबसे अलग कहना चाहता हूँ !
रहना चाहता हूँ सबसे अलग !
जैसे न हो दुनिया की खबर !
मेरे दोस्ती से जिसे कोई नहीं है वास्ता !
कहना चाहता हूँ उसे हज़ार नया है रास्ता !
मेरी ज़िंदगी में कई नए साथी मिले
कई पुराने साथी अभी तक साथ हैं !
मुझे भरोसा है उन दोस्तों पर
जो और आगे तक साथ रहेंगे !
मैं नहीं याद रखना चाहता उन दोस्तों को
जिनका साथ अब नहीं है,
या फिर जिन्होंने साथ छोड़ दिया !
मेरी याद में वो हमेशा याद बनकर रहेंगे
क्योंकि हम अब कभी साथ नहीं रहेंगे !
मोहब्बत मेरे लिए उनके दिल में भी होगी
और मेरे दिल में भी उनके लिए मोहब्बत रहेगी !

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