शुक्रवार, 12 जून 2015

गमों की परछाईं

गुनाहों के दरम्यान मैं चलता रहा फिर भी,
ये सोचकर एक मुस्कान मिल जाए मुझे कहीं ।
ना जाने किस ओर छिपी है मेरी मंजिल
जानना चाहता हूँ अपने दिल से ही ।
मेरी अधूरी कहानी ना जाने कब पूरी होगी
यूँ पहचान कब दोस्तों में बनेगी ।
मैं भी मौज-मस्ती में जिन्दगी जीना चाहता हूँ
खुशियों को दिल में बसाना चाहता हूँ ।
मैं उन सब को भूल जाना चाहता हूँ
जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए दोस्त बनाया ।
मैं उनके साथ रहना चाहता हूँ
जिन्होंने अपने दिल में बसाया ।
मेरी आदतें ना बुरी हैं और नहीं चाहतें
मेरे दिल में सबके लिए है एक जैसी मोहब्बतें ।
अच्छे के लिए मैं अच्छा हूँ और बुरों के लिए बुरा
प्यार अगर आता है तो नफ़रत भी बहुत ज्यादा ।

कोई टिप्पणी नहीं: