एक खत लिखा था
उस हसीन मुखड़े के ख्याल में
जिसे हर क्षण सोचा करता था
लेकिन अब ऐसा लग रहा है
मैं गलतफहमी में जी रहा था
उसके ख्याल में कोई और था
जिसे मैंने सबसे करीबी साथी
समझा था
उसने किसी और को अपना साथी
माना था
खत था मेरा प्यारा-सा
जिसमे बंधा था उसका एहसास
जिसमे संग थी मेरी दिल की
आवाज़
जो कह रहा था चीख-चीख के
जो पूछ रहा है तुमसे
कैसे हो तुम, कैसी चल रही है तुम्हारी ज़िंदगी ?
क्या तुम्हें मुझसे मिलने का
दिल नहीं करता ?
क्या तुम मुझसे दोस्ती नहीं
निभा सकते ?
लेकिन मैं ये नहीं जानता था
की भावनाओं के संग लिखा गया
ये खत
जब पहुंचेगा उस साथी के पास
तो जवाब में भावना ही नहीं
अक्स और रक्त में भी उबाल ला
देगा
जो सहन नहीं हो सकता
यूं बार-बार चोट खाने से
अच्छा है
की एक बार गहरा जख्म आ जाये
और उसे पूरी तरह भूल कर
एक अच्छे और सच्चे दोस्त की
तलाश करूँ
जो हमेशा साथ दे सके
जिससे दिल की बात साझा कर सकूँ !!
जिससे दिल की बात साझा कर सकूँ !!
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