शनिवार, 11 अप्रैल 2015

क्यों बन गयी दूरी ?

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कुछ क्षणों के लिए मैं भी घबरा-सा इस तरह गया
की समझ ना क्या करूँ और क्या नहीं करूँ ?
जब मैंने देखा आँखें खोल कर
तो लगा जैसे मैं नए सवेरे में हूँ
लेकिन मैं नहीं जानता था की मैं अंधेरे में हूँ
मैं सारथी बनना चाहता था उस अर्जुन का
जिसे मैं जानता तो था
लेकिन मैं पहचानता नहीं था
क्योंकि इस मासूम चेहरे के आगे नकाब था
जो आज तक मैंने नहीं देखा था
क्योंकि मैंने अर्जुन से मित्रता की थी
जिसे मैं दिल से निभाना चाहता था
और मैं किसी प्रकार से शक नहीं करना चाहता था
लेकिन मैं आज उस दोराहे पर खड़ा हूँ
जहां से ना पीछे जा सकता हूँ
और ना ही आगे बढ़ सकता हूँ
पर कुछ साथी ऐसे होते हैं
जो आपसी रिश्ते में कभी कड़वाहट नहीं लाना चाहते हैं
और पूरे दिल से निभाने की कोशिश करते हैं
और सहायता करके आपके साथ हो जाते हैं
आज मुझे भी एक ऐसा ही साथी मिला
जिसने रिश्ते बनाए रखा
और तोड़कर कड़वाहट नहीं आने दी
मैं भी खुश हुआ और उसे भी खुशी हुई !

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