सोमवार, 6 अप्रैल 2015

दिल की चाहत


खौफनाक नज़ारे देख-देख कर ज़िंदा रहा ये दिल
फिर न जाने इस कदर क्यूँ डर रहा है ये दिल !
तुझसे नाता जोड़ा था जब मैंने तुम्हें मिलकर
फिर क्यूँ दूर होना चाहती हो,
खुद से डरकर या बातों में आकर ?
अपने आप को गिरता हुआ देखकर डर ऐसे लग रहा
जिसे अच्छा साथी माना उसने दूर रहना बेहतर समझा !
माना की मुझमे इतनी ताकत नहीं की
सबसे ज़ुदा होने का साहस बनाए रखूँ
लेकिन क्या किसी से प्यार करने की भी ताकत नहीं ?
क्यूँ किसी को लगता है मैं किसी लायक नहीं
मैं भी ज़िंदगी में खुशी से रहना चाहता हूँ
किसी के खुशी के खातिर जीना चाहता हूँ !
आज तक ये एहसास न था की
किसी से दिल टूटने पर कैसा एहसास होता है ?
लेकिन अचानक मेरे एक करीबी ने
ये बता दिया की मैं कैसा हूँ ?
मैं आज उस मोड़ पर खड़ा हूँ
जहां से सिर्फ मौत के मंजर नज़र आते हैं
मैंने अब तक ऐसे बहुत से ठोकर खाये हैं
जो किस्से की तरह अब तक मेरे दिल में हैं !
जी रहा हूँ मर-मरकर मैं अब तक ऐसे
खुल के अब जीना चाहता हूँ दोस्तों के जैसे !
कुछ सपने मेरे भी हैं, कुछ इरादे मेरे भी हैं
जिनको पूरी करने की तमन्ना मेरे दिल में हैं  !

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