गुरुवार, 27 अगस्त 2015

शांत हो गया मेरा प्रेम

जी रहा हूँ तेरे बगैर
एक खाली शहर की तरह
जहां शोर-शराबा तो है
पर हर जगह कमी है तेरे प्यार की
जब तुमने रोक दिया एक मोड पे
अपने कीन्हीं कारण से
पर मुझे एक भी पल काटना
मुश्किल लगता है हर दिन
क्यों शांत हो गयी हो इस तरह
कुछ बोलती क्यों नहीं
तरफ रहा हूँ तेरे हर लफ्ज सुनने को
हर पल नैन से निकलते हैं आँसू मेरे
प्यार करना सिखाया तुमने मुझे
इसलिए हर रोज़ तड़प रहा हूँ तेरे प्यार के लिए
लेकिन तुम भी मेरे लिए
हर पल यही सोचती होगी
बीते लम्हे मुझे जब भी याद आती हैं
सूनी पलके मेरी फिर से भीग जाती हैं
ये दिल हर पल क्यों ये कहता रहता है
उसे सोचकर तेरी धड़कन क्यों रूक जाती हैं

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