सोमवार, 11 अगस्त 2014

कविता

मुझे हर कोई हैं जानते !
मुझे हर शख्स हैं अपनाते !
दिल करता है उनसे बंधी रहूँ,
लेकिन सभी पास आकर, दूर हो जाते !
मुझे सभी लफ़्ज़ों से पिरोते !
उन्हें खूबसूरती से सजाते !
मुझे लम्बी बाहों में बांधकर,
एक नाम हैं देते !
हर उत्सव में मुझे पेश करते !
हर जगह मेरी पहचान कराते !
नए रंगो से बांधकर,
नयी जगह मुझे देते !
ख़ुशी से झूम उठती  मैं,
जब नए तरीके से थे आजमाते !
हर शाम नयी होती थी,
जब सभी के बीच में मुझे सुनाते !
पर वक़्त बदला, "विवेक" बदला,
बदल गयी मेरी पहचान !
बदल गयी मेरी वेश-भूषा,
लोगों ने भुला दिया,
अब बन रह गयी मैं केवल मेहमान !

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