मंगलवार, 19 अगस्त 2014

मुझे मत मारो

हज़ारो दावतें हमने अब तक दी हैं !
सबकी चाहतें हमने पूरी की की हैं !
यूँ रूठ कर जाने वाले, तुझे क्या हुआ
तेरी कौन-सी ख्वाहिशें, अधूरी छोड़ी हैं !

बिखर चुके हैं हम टुकड़ों में हर जगह !
किसी को है तकरार, कोई चाहता है इस तरह !
किसी के मन में है मेरे लिए मोहब्बत
कोई नहीं चाहता जीते रहे हम इस तरह !

इस कदर मुझे मत मारो !
हो सके तो खुद को संभालो !
अगर मैं ना तो तुम भी नहीं रहोगे
सोचो, मैं चला गया तो तुम क्या करोगे ?

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