सोमवार, 23 जून 2014

तुम मिले !

तुझसे मैं अंजान था !
तुझसे जब मेरा ना पहचान था !!
जब जाना मैंने तुझे !
जीने लगा था मैं कुछ ऐसे !!
बातें करने का सिलसिला जब शुरू हुआ !
तेरे संदेशों  से मुझे प्यार हुआ !!
यूँ अक्सर सोचा करता था !
तुझसे मिलने को दिल करता था !!
जब आवाज़ दी थी तुमने मुझे !
मैं डरा-सहमा, ना गया पास तेरे !!
चली गयी हो तुम अब किसी के में !
कैसे आऊँ अब तेरे प्यारे महफ़िल में !!
कुछ वक़्त पहले जो मिला था प्यार !
उसे कैसे ढूँढू अब मेरे यार !
मैं अब उससे यही कहूँगा ---
"रातें गुमनाम होती हैं,
दिन भी किसी के नाम होता है !
हम ज़िन्दगी में कुछ ऐसे जीते हैं,
की हर लम्हा दोस्तों के नाम होता है !"

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