बुधवार, 20 अगस्त 2014

अधूरी ख़्वाहिश

लबों को लबों से आज़ छू जाने दो !
दिल धड़कता है तो धड़क जाने दो !
यूँ मत तड़पाओ तुम मुझे आज
ज़ी भर के बाहों में खो जाने दो !

तुझसे दूर होने का डर रहता है इस दिल को
अपनी मोहब्बत का इज़हार हो जाने दो !
चाहता हूँ तुम्हें हद से भी ज्यादा
आज अपनी तमन्ना पूरी हो जाने दो !

वादा किया था रब से, चाहूंगा तुम्हें शाम-सवेरे
तेरी हर ख़्वाहिश पूरी करूँगा दिल से !
मेरे हर वादे को दिल से गुज़र जाने दो
ख्वाबों से निकला हूँ, हकीकत में आ जाने दो !

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

मुझे मत मारो

हज़ारो दावतें हमने अब तक दी हैं !
सबकी चाहतें हमने पूरी की की हैं !
यूँ रूठ कर जाने वाले, तुझे क्या हुआ
तेरी कौन-सी ख्वाहिशें, अधूरी छोड़ी हैं !

बिखर चुके हैं हम टुकड़ों में हर जगह !
किसी को है तकरार, कोई चाहता है इस तरह !
किसी के मन में है मेरे लिए मोहब्बत
कोई नहीं चाहता जीते रहे हम इस तरह !

इस कदर मुझे मत मारो !
हो सके तो खुद को संभालो !
अगर मैं ना तो तुम भी नहीं रहोगे
सोचो, मैं चला गया तो तुम क्या करोगे ?

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

वर्षा ऋतु

आता हूँ मस्त पवन के साथ
कर देता हूँ सबको मैं खबर !
आ रहा हूँ खुशियां बांटने
जो है मुझसे बेखबर !

द्विमास तक मैं रहता हूँ !
हर जगह बरसता हूँ !
किसी को  होती है ख़ुशी
कोई होता है दुख ये सोचकर !

मैं भी हूँ मस्तमौला
सभी मुझसे कहते हैं
कब लौटूंगा मैं
यहाँ-वहां बरसकर !

कुछ रहते हैं मुझमें मग्न !
कुछ रहते हैं खुद में मस्त !
कुछ कहते हैं
क्यों रहते हो तुम कुछ पल के लिए !
कुछ कहते हैं
यादें छोड़ देते हो हर पल के लिए !

किसी को होता है मुझसे प्यार !
किसी को होता है मुझपे ऐतबार !
किसी को है मुझसे तकरार !
किसी का दिल है बेक़रार !

मेरा तो है बस ये कहना------
"पानी हूँ कहीं बरस जाऊँगा !
किसी के दिल में बस जाऊँगा !
कोई है बेक़रार
ये जानने को
अगर अभी चला गया
तो फिर मिलने को कब आऊंगा !"

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

एक टूटा परिंदा

हम खुद के मालिक
हुए जा रहे थे !
नया करूँ तो कैसे करूँ
इस दूविधा में जीये जा रहे थे !

हर वक़्त ये सोचते थे
खुद अपने में मग्न थे !
जिन लोगों ने कुछ पूछा था
वो किस राह में गुम थे !

इस ज़िंदगी का क्या फायदा
जिससे कुछ हासिल ना हो !
इस महफिल में कुछ ऐसे भी हैं
जिनकी कोई मंज़िल ना हो !

दिल करता है आगे बढ़ूँ
पर रूक जाता हूँ ये सोचकर !
डर लगता है कुछ इस तरह
कैसे कहूँ, क्यूँ है दिल बेखबर !

हवाओं की तरह खो गए इरादे मेरे
नहीं कर सकता अब वादे नए !
दिल में कई सारे हैं अरमान मेरे
लेकिन बताऊँ तो बताऊँ किसे ?

सोमवार, 11 अगस्त 2014

कविता

मुझे हर कोई हैं जानते !
मुझे हर शख्स हैं अपनाते !
दिल करता है उनसे बंधी रहूँ,
लेकिन सभी पास आकर, दूर हो जाते !
मुझे सभी लफ़्ज़ों से पिरोते !
उन्हें खूबसूरती से सजाते !
मुझे लम्बी बाहों में बांधकर,
एक नाम हैं देते !
हर उत्सव में मुझे पेश करते !
हर जगह मेरी पहचान कराते !
नए रंगो से बांधकर,
नयी जगह मुझे देते !
ख़ुशी से झूम उठती  मैं,
जब नए तरीके से थे आजमाते !
हर शाम नयी होती थी,
जब सभी के बीच में मुझे सुनाते !
पर वक़्त बदला, "विवेक" बदला,
बदल गयी मेरी पहचान !
बदल गयी मेरी वेश-भूषा,
लोगों ने भुला दिया,
अब बन रह गयी मैं केवल मेहमान !