शनिवार, 12 अगस्त 2017

भींगा-भींगा मौसम

चंद महीनों का ये मौसम
खिल खिला देता है उपवन |
पवन जब चलती है जोश में
तो संग इसके लग जाता है मन |

तितलियाँ, जुगनू को देख
जैसे खुश हो जाते हैं हम |
अगर ये आ जाये हाथ में
तो जाने नहीं देते हैं हम |

बारिशों के इस मौसम में
जब भींग जाते हैं हमारे तन |
चंचल मन को शांत करने
निकल पड़ते हैं हम भी उपवन |

बाग गुलजार हो जाते हैं
फूलों में छा जाते हैं गुलशन |
साये भी दिखने लग जाते हैं
जो रहते हैं नजरबंद |

तन भी भींगा, मन भी भींगा,
फिर भी चमक रहा है दर्पण |
जब दस्तक दे दिया है खुशी ने
तो क्यों दुखी हो रहा है मन |

अगले कुछ महीनों हमारा है
जीत लो सारे दिलों को |
संग चल रहे हैं सारे जहाँ
क्या पता, कल हो न हो |

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