बुधवार, 2 अगस्त 2017

मन की दुहाई

मैं ठहरा हुआ पानी
वो चंचल हवा है |
किस गली जाने
वो चांद खिला है |

सदाये जो तेरी
चलती थी यहां पे
मिलता था दिल को करार
पर न जाने किससे
अब इकरार हुआ है |

वो लौटी तो ऐसे
इठलाते, बलखाते
मुस्काराते हुए मुझसे
कह दिया,
किसी से प्यार हुआ है |

मैने भी सोचा
वो चंचल है, बहता मन है
लेकिन वो कौन है
जिसे इस पर ऐतबार हुआ है |

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