बुधवार, 12 जुलाई 2017

छांव की नरमी

तू है कर्ता-धर्ता
तेरे लिए जग रोता |
जाएगा जिस ओर तू
मैं भी उसी ओर चलता |

संभलना सीखा तुझसे
मैं चलना सीखा तुझसे |
अगर मैं गिर गया कहीं भी
तो उठना सीखा तुझसे |

मेरी है पगडंडी तू
मेरी हर कदम है ही तू |
ठोकरें बन जाऊँ न मैं
इसलिए बैसाखी है तू |

मेरी हिम्मत जब भी टूटी
मेरी सोच जब भी रूकी |
समझ लिया तूने मेरे मन को
क्योंकि तू ही है मेरी शक्ति |

लड़ रहा हूँ अब अपने खून के लिए मैं
मेरे अपने को खोज रहा हूँ अब मैं |
मेरी आत्मा तू ही है,
मेरी शब्द भी तू ही है
तेरे शांति के कारण ही रो रहा हूँ अब मैं |

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