शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

जश्न - ए - जुदाई

अनजाने में एक तोहफा
दे दिया था किसी ने |
छोड़ आया उस गली
जहां मिला था वो मुझे |

क्या भरोसा करना उस पर
जो किसी काबिल ना हो |
क्यों चलता रहूँ उसके पीछे
जो कभी हासिल ना हो |

क्या दोस्ती, क्या दुश्मनी
अब इसमें कोई दिलचस्पी नहीं |
क्या प्यार, क्या मोहब्बत
नहीं चाहिए ये सब कभी |

इंतजार करने की हिम्मत नहीं
किसी को चाहने की अब सोचता नहीं |
मिलते हैं कई लोग तन्हा जिन्दगी में
किसी से जुड़ने का अब शौक नहीं |

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