बुधवार, 29 जनवरी 2014

यादों का सफ़र !

वो मेरे सामने थे सवेरे कि तरह !
उन्हें ढूंढ रहा था मैं अँधेरे कि तरह !
उनकी दिख रही थी केवल परछाईं,
अब पूछूं भी मैं किससे,
जो मिल गए हैं मुझे इस तरह !

यादों के सफ़र में ना याद साथ है !
दूर इस सफ़र में ना कोई साथ है !
चल पड़ा हूँ अकेला अंजान इस सफ़र में,
बनकर मुसाफिर हर राही कि तरह !

आ चुका था दूर !
नहीं होना चाहता था अब
किसी के लिए मसहूर !
छोड़ दिया था सभी को,
एक अंजान साथी, दोस्त कि तरह !

कभी हुआ था किसी से प्यार !
कभी किया था किसी से इज़हार !
अब नहीं करना किसी पे ऐतबार,
भूल चूका था मैं सभी को,
एक बुरे सपने कि तरह !

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