और शामिल होना था सभी में
हमें हाथ बढ़ाना था
सूरज को डूबने से बचने के लिए
और रोकना अंधकार से
कम से कम आधे गोलार्ध को
हमें बात करना था पत्तियों से
और इकठ्ठा करना तितलियों के लिए
ढेर सारा पराग
हमें बचाना था नारियल का पानी
और चूल्हे के लिए आग
पहनना था हमें
नग्न होते पहारों को
पदों का लिबास
और बचानी थी हमें
परिंदों की चहचाहट
हमें रहना था अनार में दाने की तरह
मेहँदी में रंग
और गन्ने में रस की तरह
हमें यादों में बसना था लोगों के
मटरगस्ती भरे दिनों सा
और दोरना था लहू बनकर
सबो के नब्ज़ में
सबो के नब्ज़ में
लेकिन अफ़सोस की हमें
कुछ नहीं कर पाए
जैसा करना था हमें!
1 टिप्पणी:
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
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