शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

छूटता आँचल

है शौक वही, पर शौक नयी नहीं
है साथ वही, पर साथ नहीं
हूँ दूर सही, पर मजबूर नहीं
हूँ निर्भीक, पर नजदीक नहीं
है ये सब विचार उस मन से
है एक सवाल उन सब जन से
जो आ रहे हैं या जो जा रहे हैं
क्या वो मेरे हैं या क्या वो आपके थे ?
मित्र कहूँ या शत्रु, समझ नहीं मुझे आ रहा
पर मैं हूँ शांत, है एक विश्वास
आने-जाने वालों पर नहीं,
खुद पर है विश्वास
मेरा एक साथी है
जो समंदर के दूसरी छोर पर बैठा है
एक ऐसे छोर पर बैठा है
जहां से वो सिर्फ ये देख रहा है
ये सोच रहा है
की वो दिन कब आएगा
जिस दिन वो मुझसे मिल पाएगा

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