सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

मिलावट की दुनिया


कुछ अर्से पहले हमने
कभी ऐसा ना सोचा था !
जैसे आज जी रहे हैं
ज़िंदगी वैसा कभी होगा !
हर दूसरे दिन, हर दूसरे लोगों
की तबीयत में खराबी !
जब कुछ खाते और पीतें हैं
तो महसूस होती है गड़बड़ी !
अब तो करो आगाज,
उस अंजाम तक पहुँचने का
जिसकी हुई थी कभी शुरूआत !
उसे दे एक नयी आवाज़
और बना दे एक नया इतिहास !
अब उठ जाओ दोस्तो,
जागो अपने सपनों से
करो दोस्ती उन लोगों से !
जिनहोने मिलावट के लिए
तुम्हें सुला दिया !
अपने मुस्कान के लिए
तुम्हें रुला दिया !
कभी ना हो ऐसी ज़िंदगी
जिसे चैन से जी ना सकें !
कभी खुल के ना हँस पाएँ
और ना रो सकें !
मिलावट की इस दुनिया में
कोई एक दिन
अच्छे से रह नहीं सकता !
उसे जानता नहीं, उसे पहचानता नहीं
इसलिए कुछ कह भी नहीं सकता !
दोस्तों, समझ उसमे है बड़ी
लेकिन समझ कहाँ चली गयी मेरी !
सोच-सोच कर हूँ परेशान
शक्ल से हूँ थोड़ा नादान !
लेकिन समझ नहीं पा रहा इस बात को
कैसे हो इसका निदान ?

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