शनिवार, 6 दिसंबर 2014

अनजाने रास्ते की ऒर

हम अजनबी हैं दोस्तों उस भीड़ में !
जहाँ दिखती है एक हस्ती,
लाखों की भीड़ में !
पहचाने जाते हैं वो लोग,
जो मिलते हैं तन्हां ज़िन्दगी में !
हम तो पीछे रह गए दोस्तों,
उनसे मिलने की ज़िद में !

न जाने वो कौन-सा साया है,
जिसे ढूंढ रहे थे हम अब तक !
दिल करता है ढूँढू उस शख्स को,
जो रहे मेरे दिल से लेकर ज़ुबां तक !
राह में दिखते सितारे हज़ार हैं !
फूलों की बगियन की तरह, नज़ारे हज़ार हैं !
मंज़िल बस एक ही पाना है,
लेकिन सोच में हूँ, कैसे पहुंचूं वहां तक !

दिल बेखबर है, सोचता यही है !
कैसे कहूँ उससे, जो दिल में बसी है !
एक साया जो मंडरा रहा है, भंवरों की तरह
न जाने किस ताक में है, जानता वही है !
है इरादा नेक उसका, जिसे वो ढूंढ रहा है !
है हमसफ़र वही उसका, जो अब तक न मिला है !
अनचाही दोस्ती का ये पहला कदम है,
कैसे आगे बढूँ, क्या ये शुरूआत सही है !

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