लहरों की छाया है ये
तूफानी रात है!
कैसे-कैसे मिलते हैं
ना बनती कोई बात है!
कैसे ढूंढूं उसे मैं
कहाँ वो खो गयी!
क्यों नहीं मिलती मुझे
किसकी वो हो गयी!
कहना ये बस ये तुझे
बतला दे ये तू मुझे!
चाहती हो क्या मुझे
खोना नहीं चाहता तुझे!
तूफानी रात है!
कैसे-कैसे मिलते हैं
ना बनती कोई बात है!
कैसे ढूंढूं उसे मैं
कहाँ वो खो गयी!
क्यों नहीं मिलती मुझे
किसकी वो हो गयी!
कहना ये बस ये तुझे
बतला दे ये तू मुझे!
चाहती हो क्या मुझे
खोना नहीं चाहता तुझे!
1 टिप्पणी:
अच्छी कविता है... लिखा अच्छे तरीके से है... पर देखता हूँ की कममेंट्स कम आते हैं... क्यूंकी तुम किसी को कोममेंट्स नहीं करते, न फेसबूक पर न ब्लॉग पर...
गुमनाम ब्लॉगर मत बनो....
एक टिप्पणी भेजें