मंजिल-मंजिल सोच रहा था!
कदम-कदम पर खोज रहा था!
नहीं मिला तो मैं आज तक
तरप-तरप कर मर रहा था!
पूछता था हर कोई
क्या हुआ है, बता तू?
उनसे डर कर, सोच-सोच कर
मैं ये दिल से पूछ रहा था!
नसीब में मेरे क्या लिखा था
ये मैं नहीं जानता था!
आगे क्या होगा मेरा
ये मैं नहीं जानता था!
पूछ लो दिल से
ये दिल कह रहा है!
खुश हो जाओ दिल से
ये दिल कह रहा है!
2 टिप्पणियां:
मंजिल-मंजिल सोच रहा था!
कदम-कदम पर खोज रहा था!
नहीं मिला तो मैं आज तक
तरप-तरप कर मर रहा था!
बहुत ही अच्छी और प्यारी बाते लिखीं हैं तुमने पर शब्दों को सही से देख लिया करो...
कविताएं पढ़ कर मैं भी तरप गया.... नीरज कुमार... जी अपने हिट्स बढ़ाने के लिए सड़ी हुए प्रतिक्रियाएं ना भेजा करें.. टुच्चापन लगता है.
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